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यं व॒र्धय॒न्तीद्गिरः॒ पतिं॑ तु॒रस्य॒ राध॑सः। तमिन्न्व॑स्य॒ रोद॑सी दे॒वी शुष्मं॑ सपर्यतः ॥५॥

English Transliteration

yaṁ vardhayantīd giraḥ patiṁ turasya rādhasaḥ | tam in nv asya rodasī devī śuṣmaṁ saparyataḥ ||

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Pad Path

यम्। व॒र्धय॑न्ति। इत्। गिरः॑। पति॑म्। तु॒रस्य॑। राध॑सः। तम्। इत्। नु। अ॒स्य॒। रोद॑सी॒ इति॑। दे॒वी इति॑। शुष्म॑म्। स॒प॒र्य॒तः॒ ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यम्) जिस (तुरस्य) दुःख के नाश करनेवाले (राधसः) धन के (पतिम्) स्वामी, ऐश्वर्य्य से युक्त को (इत्) ही (गिरः) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणियाँ (वर्धयन्ति) बढ़ाती हैं और (अस्य) इसके (देवी) सुन्दर प्रकाशमान (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (शुष्मम्) बल का (नु) शीघ्र (सपर्यतः) सेवन करते हैं (तम्, इत्) उसी की आप लोग वृद्धि करके सेवा करो ॥५॥
Connotation: - जो मनुष्य श्रेष्ठ गुण, कर्म्म और स्वभावों में वृद्धि को प्राप्त जन की वृद्धि करते हैं, वे पञ्चतत्त्वमय राज्य का भोग करते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यं तुरस्य राधसः पतिमिन्द्रमिद् गिरो वर्धयन्त्यस्य देवी रोदसी शुष्मन्नु सपर्यतस्तमिद्यूयं वर्धयित्वा सेवध्वम् ॥५॥

Word-Meaning: - (यम्) (वर्धयन्ति) (इत्) एव (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (पतिम्) स्वामिनम् (तुरस्य) दुःखहिंसकस्य (राधसः) धनस्य (तम्) (इत्) (नु) सद्यः (अस्य) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (देवी) कमनीये देदीप्यमाने (शुष्मम्) बलम् (सपर्यतः) सेवेते ॥५॥
Connotation: - ये मनुष्याः शुभगुणकर्मस्वभावे वर्धमानं जनं वर्धयन्ति ते पञ्चतत्त्वमयं राज्यं भुञ्जते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभावाच्या माणसांना वर्धित करतात ती पंचतत्त्वमय राज्याचा भोग करतात. ॥ ५ ॥