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त्वं श॒तान्यव॒ शम्ब॑रस्य॒ पुरो॑ जघन्थाप्र॒तीनि॒ दस्योः॑। अशि॑क्षो॒ यत्र॒ शच्या॑ शचीवो॒ दिवो॑दासाय सुन्व॒ते सु॑तक्रे भ॒रद्वा॑जाय गृण॒ते वसू॑नि ॥४॥

English Transliteration

tvaṁ śatāny ava śambarasya puro jaghanthāpratīni dasyoḥ | aśikṣo yatra śacyā śacīvo divodāsāya sunvate sutakre bharadvājāya gṛṇate vasūni ||

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Pad Path

त्वम्। श॒तानि॑। अव॑। शम्ब॑रस्य। पुरः॑। ज॒घ॒न्थ॒। अ॒प्र॒तीनि॑। दस्योः॑। अशि॑क्षः। यत्र॑। शच्या॑। श॒ची॒ऽवः॒। दिवः॑ऽदासाय। सु॒न्व॒ते। सु॒त॒ऽक्रे॒। भ॒रत्ऽवा॑जाय। गृ॒ण॒ते। वसू॑नि ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:31» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शचीवः) उत्तम बुद्धिवाले (सुतक्रे) उत्तम प्रकार प्रसन्न अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले राजन् ! (त्वम्) आप जैसे सूर्य्य (शम्बरस्य) मेघ के समान शत्रु के (शतानि) सैकड़ों (पुरः) नगरों का (अव, जघन्थ) नाश करते हो, वैसे (दस्योः) दूसरे के द्रव्य चुरानेवाले दुष्टजन के (अप्रतीनि) नहीं जाने गये भी सैकड़ों नगरों का नाश करिये और (शच्या) उत्तमशिक्षायुक्त वाणी वा उत्तम कर्म्म से इनको (अशिक्षः) शिक्षा दीजिये और (यत्र) जहाँ (दिवोदासाय) विज्ञान के देने तथा (सुन्वते) सार के निकालनेवाले (गृणते) स्तुति करते हुए (भरद्वाजाय) विज्ञान के धारण करनेवाले के लिये (वसूनि) द्रव्यों को दीजिये, वहाँ इससे विद्या का प्रचार कराइये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा सूर्य्य के सदृश न्याय का प्रकाश करनेवाला और मेघ के सदृश विद्या आदि के प्रचार के लिये बहुत धन का देनेवाला होता है, वही सर्वत्र विजय को प्राप्त होता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे शचीवः सुतक्र इन्द्र ! राजँस्त्वं यथा सूर्यः शम्बरस्य शतानि पुरोऽव जघन्थ तथा दस्योरप्रतीनि शतानि पुरो जघन्थ शच्यैतानशिक्षो यत्र दिवोदासाय सुन्वते गृणते भरद्वाजाय वसूनि दद्यास्तत्रैतेन विद्याप्रचारं कारय ॥४॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (शतानि) (अव) (शम्बरस्य) मेघस्येव शत्रोः (पुरः) पुराणि (जघन्थ) हंसि (अप्रतीनि) अप्रतीतान्यपि (दस्योः) परद्रव्यापहारकस्य दुष्टस्य (अशिक्षः) शिक्षय (यत्र) (शच्या) सुशिक्षितया वाचोत्तमेन कर्मणा वा (शचीवः) शची प्रशस्ता प्रज्ञा विद्यते यस्य सः (दिवोदासाय) विज्ञानस्य दात्रे (सुन्वते) सारनिष्पादकाय (सुतक्रे) सुष्ठुप्रसन्न (भरद्वाजाय) विज्ञानधर्त्रे (गृणते) स्तुवते (वसूनि) द्रव्याणि ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा सूर्य्यवन्न्यायप्रकाशको मेघवद्विद्यादिप्रचाराय पुष्कलधनदाता भवति स एव विजयमाप्नोति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा सूर्याप्रमाणे न्यायप्रकाशक, मेघवृष्टीप्रमाणे विद्येचा प्रचार करण्यासाठी पुष्कळ धन देतो त्यालाच विजय मिळतो. ॥ ४ ॥