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अभू॒रेको॑ रयिपते रयी॒णामा हस्त॑योरधिथा इन्द्र कृ॒ष्टीः। वि तो॒के अ॒प्सु तन॑ये च॒ सूरेऽवो॑चन्त चर्ष॒णयो॒ विवा॑चः ॥१॥

English Transliteration

abhūr eko rayipate rayīṇām ā hastayor adhithā indra kṛṣṭīḥ | vi toke apsu tanaye ca sūre vocanta carṣaṇayo vivācaḥ ||

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Pad Path

अभूः॑। एकः॑। र॒यि॒ऽप॒ते॒। र॒यी॒णाम्। आ। हस्त॑योः। अ॒धि॒थाः॒। इ॒न्द्र॒। कृ॒ष्टीः। वि। तो॒के। अ॒प्ऽसु। तन॑ये। च॒। सूरे॑। अवो॑चन्त। च॒र्ष॒णयः॑। विवा॑चः ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:31» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (रयीणाम्) द्रव्यों के बीच (रयिपते) धन के स्वामिन् (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के देनेवाले राजन् ! आप जो (विवाचः) अनेक प्रकार की विद्या और शिक्षा से युक्त वाणियोंवाले (चर्षणयः) मनुष्य (अप्सु) प्राणों वा अन्तरिक्ष तथा (तोके) शीघ्र उत्पन्न हुए सन्तान (तनये, च) और ब्रह्मचारी कुमार और (सूरे) सूर्य्य में विद्याओं को (वि, अवोचन्त) विशेष कहते हैं उन (कृष्टीः) मनुष्य आदि प्रजाओं को (हस्तयोः) हाथों में आंवले के सदृश (आ, अधिथाः) अच्छे प्रकार धारण करिये और (एकः) सहायरहित हुए प्रजा के पालन करनेवाले (अभूः) हूजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। परमेश्वर का स्वभाव है कि जो सत्य का उपदेश देते हैं, उनको सदा उत्साहित करता और रक्षा में धारण करता और ऐश्वर्य्य को प्राप्त कराता है और जैसे विनय से युक्त एक भी राजा राज्यपालन करने को समर्थ होता है, वैसे ही सर्वशक्तिमान् परमात्मा सम्पूर्ण सृष्टि की सदा रक्षा करता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे रयीणां रयिपत इन्द्र ! त्वं ये विवाचश्चर्षणयोऽप्सु तोके तनये च सूरे च विद्या व्यवोचन्त ताः कृष्टीर्हस्तयोरामलकमिवाऽऽधिथा एकस्सन् प्रजापालकोऽभूः ॥१॥

Word-Meaning: - (अभूः) भवेः (एकः) असहायः (रयिपते) धनस्वामिन् (रयीणाम्) द्रव्याणाम् (आ) (हस्तयोः) (अधिथाः) दध्याः (इन्द्र) ऐश्वर्यप्रद राजन् (कृष्टीः) मनुष्यादिप्रजाः (वि) (तोके) सद्यो जाते (अप्सु) प्राणेष्वन्तरिक्षे वा (तनये) ब्रह्मचारिणि कुमारे (च) (सूरे) सूर्ये (अवोचन्त) वदन्ति (चर्षणयः) मनुष्याः (विवाचः) विविधविद्याशिक्षायुक्ता वाचो येषान्ते ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । परमेश्वरस्य स्वभावोऽस्ति ये सत्यमुपदिशन्ति तान्त्सदोत्साहाय्ये रक्षणे च दधात्यैश्वर्यं च प्रापयति यथा विनययुक्त एकोऽपि राजा राज्यं पालयितुं शक्नोति तथैव सर्वशक्तिमान् परमात्माऽखिलां सृष्टिं सदा रक्षति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र व राजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सत्याचा उपदेश करतात त्यांना परमेश्वर सदैव उत्साहित करतो, रक्षण करतो व ऐश्वर्य प्राप्त करवून देतो. जसा विनयी राजा राज्यपालन करण्यास समर्थ असतो तसेच सर्वशक्तिमान परमात्मा संपूर्ण सृष्टीचे सदैव रक्षण करतो. ॥ १ ॥