दि॒वो न यस्य॑ विध॒तो नवी॑नो॒द्वृषा॑ रु॒क्ष ओष॑धीषु नूनोत्। घृणा॒ न यो ध्रज॑सा॒ पत्म॑ना॒ यन्ना रोद॑सी॒ वसु॑ना॒ दं सु॒पत्नी॑ ॥७॥
divo na yasya vidhato navīnod vṛṣā rukṣa oṣadhīṣu nūnot | ghṛṇā na yo dhrajasā patmanā yann ā rodasī vasunā daṁ supatnī ||
दि॒वः। न। यस्य॑। वि॒ध॒तः। नवी॑नोत्। वृषा॑। रु॒क्षः। ओष॑धीषु। नू॒नो॒त्। घृणा॑। न। यः। ध्रज॑सा। पत्म॑ना। यन्। आ। रोद॑सी॒ इति॑। वसु॑ना। दम्। सु॒पत्नी॒ इति॑ सु॒ऽपत्नी॑ ॥७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स कीदृश इत्याह ॥
यस्य दिवो न विधतो वृषा रुक्षो नवीनोदोषधीषु नूनोद्यो घृणा न ध्रजसा पत्मना वसुना सुपत्नी रोदसी यन्दमाऽऽनूनोत् सोऽग्निः सर्वैर्वेदितव्यः ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A