Go To Mantra

त्वं ह॒ नु त्यद॑दमयो॒ दस्यूँ॒रेकः॑ कृ॒ष्टीर॑वनो॒रार्या॑य। अस्ति॑ स्वि॒न्नु वी॒र्यं१॒॑ तत्त॑ इन्द्र॒ न स्वि॑दस्ति॒ तदृ॑तु॒था वि वो॑चः ॥३॥

English Transliteration

tvaṁ ha nu tyad adamāyo dasyūm̐r ekaḥ kṛṣṭīr avanor āryāya | asti svin nu vīryaṁ tat ta indra na svid asti tad ṛtuthā vi vocaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

त्वम्। ह॒। नु। त्यत्। अ॒द॒म॒यः॒। दस्यू॑न्। एकः॑। कृ॒ष्टीः। अ॒व॒नोः॒। आर्या॑य। अस्ति॑। स्वि॒त्। नु। वी॒र्य॑म्। तत्। ते॒। इ॒न्द्र॒। न। स्वि॑त्। अ॒स्ति॒। तत्। ऋ॒तु॒ऽथा। वि। वो॒चः॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:18» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) राजन् ! जो (ते) आप का (वीर्य्यम्) बल (अस्ति) है (स्वित्) क्या? (नु) शीघ्र जो (न) नहीं (अस्ति) है और (स्वित्) भी (ऋतुथा) ऋतु जैसे वैसे जो (वि, वोचः) कहते हो (तत्) उसका (त्वम्) आप (अवनोः) सेवन करिये (तत्) वह मेरा हो और (दस्यून्) दुष्ट चोरों को (एकः) सहायरहित हुए आप (अदमयः) दमन करिये वह आप (ह) निश्चय (कृष्टीः) मनुष्यों को (आर्य्याय) द्विज के लिये (नु) शीघ्र उत्तम प्रकार सेवन करिये (त्यत्) उसको हम लोग भी ऐसे करें ॥३॥
Connotation: - राजाओं का यह मुख्य कर्म्म है कि सम्पूर्ण दुष्ट चोरों का निवारण करके प्रजाओं का पालन करें ॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र राजन् ! यत्ते वीर्य्यमस्ति स्विन्नु यन्नास्ति स्विदृतुथा यद्वि वोचस्तत्त्वमवनोस्तन्ममास्तु दस्यूनेकः सन्नदमयः स त्वं ह कृष्टीरार्य्याय न्ववनोस्त्यद्वयप्येवं कुर्य्याम ॥३॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (ह) किल (नु) सद्यः (त्यत्) तत् (अदमयः) दमय (दस्यून्) दुष्टान् चोरान् (एकः) असहायः (कृष्टीः) मनुष्यान् (अवनोः) सम्भज (आर्य्याय) द्विजाय (अस्ति) (स्वित्) (नु) सद्यः (वीर्य्यम्) बलम् (तत्) (ते) तव (इन्द्र) राजन् (न) निषेधे (स्वित्) अपि (अस्ति) (तत्) (ऋतुथा) ऋतुरिव (वि) (वोचः) ॥३॥
Connotation: - राज्ञामिदं मुख्यं कर्म्मास्ति यत्सर्वान् दस्यून् निवार्य्य प्रजापालनं कुर्य्युः ॥३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - राजाचे हे मुख्य कर्तव्य आहे की, संपूर्ण दुष्ट चोरांचे निवारण करून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ३ ॥