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आ ते॑ अग्न ऋ॒चा ह॒विर्हृ॒दा त॒ष्टं भ॑रामसि। ते ते॑ भवन्तू॒क्षण॑ ऋष॒भासो॑ व॒शा उ॒त ॥४७॥

English Transliteration

ā te agna ṛcā havir hṛdā taṣṭam bharāmasi | te te bhavantūkṣaṇa ṛṣabhāso vaśā uta ||

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Pad Path

आ। ते॒। अ॒ग्ने॒। ऋ॒चा। ह॒विः। हृ॒दा। त॒ष्टम्। भ॒रा॒म॒सि॒। ते। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। उ॒क्षणः॑। ऋ॒ष॒भासः॑। व॒शाः। उ॒त ॥४७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:16» Mantra:47 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:30» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:47


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! जिन (ते) आपके (हविः) अन्तःकरण और (तष्टम्) अत्यन्त शुद्ध किये गये स्वरूप को हम लोग (ऋचा) प्रशंसारूप ऋग्वेद आदि से और (हृदा) हृदय से (आ, भरामसि) अच्छे प्रकार पोषण करते हैं उन (ते) आपकी कृपा से हमारे और (ते) आपके संबन्धी (उक्षणः) सेचन करनेवाले (ऋषभासः) उत्तम (उत) भी (वशाः) कामना करते हुए (भवन्तु) होवें ॥४७॥
Connotation: - जो सत्यभाव से और अन्तःकरण से जगदीश्वर की आज्ञा का सेवन करते हैं, वे सब प्रकार से उत्कृष्ट होते हैं ॥४७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यस्य ते तव हविस्तष्टं स्वरूपं वयमृचा हृदाऽऽभरामसि ते कृपयाऽस्माकं ते सम्बन्धिन उक्षण ऋषभास उत वशा भवन्तु ॥४७॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ते) तव (अग्ने) जगदीश्वर (ऋचा) प्रशंसया ऋग्वेदादिना (हविः) अन्तःकरणम् (हृदा) हृदयेन (तष्टम्) तीक्ष्णं शोधितम् (भरामसि) भरामः (ते) (ते) तव (भवन्तु) (उक्षणः) सेचकाः (ऋषभासः) उत्तमाः (वशाः) कामयमानाः (उत) ॥४७॥
Connotation: - ये सत्यभावेनान्तःकरणेन जगदीश्वराज्ञां सेवन्ते ते सर्वथोत्कृष्टा भवन्ति ॥४७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सत्यभावनेने अंतःकरणपूर्वक जगदीश्वराच्या आज्ञेचे पालन करतात ते सर्व प्रकारे उत्कृष्ट असतात. ॥ ४७ ॥