प्र दे॒वं दे॒ववी॑तये॒ भर॑ता वसु॒वित्त॑मम्। आ स्वे योनौ॒ नि षी॑दतु ॥४१॥
pra devaṁ devavītaye bharatā vasuvittamam | ā sve yonau ni ṣīdatu ||
प्र। दे॒वम्। दे॒वऽवी॑तये। भर॑त। व॒सु॒वित्ऽत॑मम्। आ। स्वे। योनौ॑। नि। सी॒द॒तु॒ ॥४१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥
हे विद्वांसो ! यूयं देववीतये वसुवित्तमं देवं स्वे योनौ प्राऽऽभरता येन मनुष्यः सुखेन निषीदतु ॥४१॥
MATA SAVITA JOSHI
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