स प्र॑त्न॒वन्नवी॑य॒साग्ने॑ द्यु॒म्नेन॑ सं॒यता॑। बृ॒हत्त॑तन्थ भा॒नुना॑ ॥२१॥
sa pratnavan navīyasāgne dyumnena saṁyatā | bṛhat tatantha bhānunā ||
सः। प्र॒त्न॒ऽवत्। नवी॑यसा। अग्ने॑। द्यु॒म्नेन॑। स॒म्ऽयता॑। बृ॒हत्। त॒त॒न्थ॒। भा॒नुना॑ ॥२१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे अग्ने ! यथा सूर्य्यो भानुना प्रत्नवद्बृहत्ततन्थ तथा स त्वं नवीयसा संयता द्युम्नेनास्मांस्तनु ॥२१॥
MATA SAVITA JOSHI
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