या सु॑नी॒थे शौ॑चद्र॒थे व्यौच्छो॑ दुहितर्दिवः। सा व्यु॑च्छ॒ सही॑यसि स॒त्यश्र॑वसि वा॒य्ये सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥२॥
yā sunīthe śaucadrathe vy auccho duhitar divaḥ | sā vy uccha sahīyasi satyaśravasi vāyye sujāte aśvasūnṛte ||
या। सु॒ऽनी॒थे। शौ॒च॒त्ऽर॒थे। वि। औच्छः॑। दु॒हि॒तः॒। दि॒वः॒। सा। वि। उ॒च्छ॒। सही॑यसि। स॒त्यऽश्र॑वसि। वा॒य्ये। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे अश्वसूनृते सुजाते वाय्ये सहीयसि दिवो दुहितरिव वर्त्तमाने स्त्रि ! या त्वं शौचद्रथे सुनीथे सत्यश्रवसि व्यौच्छः सा त्वमस्मान् सुखे व्युच्छ ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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