यदु॑त्त॒मे म॑रुतो मध्य॒मे वा॒ यद्वा॑व॒मे सु॑भगासो दि॒वि ष्ठ। अतो॑ नो रुद्रा उ॒त वा॒ न्व१॒॑स्याग्ने॑ वि॒त्ताद्ध॒विषो॒ यद्यजा॑म ॥६॥
yad uttame maruto madhyame vā yad vāvame subhagāso divi ṣṭha | ato no rudrā uta vā nv asyāgne vittād dhaviṣo yad yajāma ||
यत्। उ॒त्ऽत॒मे। म॒रु॒तः॒। म॒ध्य॒मे॒। वा॒। यत्। वा॒। अ॒व॒मे। सु॒ऽभ॒गा॒सः॒। दि॒वि। स्थ। अतः॑। नः॒। रु॒द्राः॒। उ॒त। वा॒। नु। अ॒स्य॒। अग्ने॑। वि॒त्तात्। ह॒विषः॑। यत्। यजा॑म ॥६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को परस्पर कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥
हे सुभगासो रुद्रा मरुतो ! यूयं यदुत्तमे मध्यमे वावमे यद्वान्यत्रावमे दिवि वा स्थ तत्रातो नोऽस्मानुत्तमे व्यवहारे स्थापयत। उत वा हे अग्नेऽस्य वित्ताद्धविषो यन्नु वयं यजाम तत्र त्वमपि यजस्व ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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