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यदु॑त्त॒मे म॑रुतो मध्य॒मे वा॒ यद्वा॑व॒मे सु॑भगासो दि॒वि ष्ठ। अतो॑ नो रुद्रा उ॒त वा॒ न्व१॒॑स्याग्ने॑ वि॒त्ताद्ध॒विषो॒ यद्यजा॑म ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad uttame maruto madhyame vā yad vāvame subhagāso divi ṣṭha | ato no rudrā uta vā nv asyāgne vittād dhaviṣo yad yajāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। उ॒त्ऽत॒मे। म॒रु॒तः॒। म॒ध्य॒मे॒। वा॒। यत्। वा॒। अ॒व॒मे। सु॒ऽभ॒गा॒सः॒। दि॒वि। स्थ। अतः॑। नः॒। रु॒द्राः॒। उ॒त। वा॒। नु। अ॒स्य॒। अग्ने॑। वि॒त्तात्। ह॒विषः॑। यत्। यजा॑म ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:60» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को परस्पर कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभगासः) उत्तम ऐश्वर्य्यवाले और (रुद्राः) मध्यस्थ विद्वान् (मरुतः) मनुष्यो ! आप लोग (यत्) जिस (उत्तमे) उत्तम व्यवहार में (मध्यमे) मध्यस्थ व्यवहार में (वा) वा (अवमे) निकृष्ट व्यवहार में (यत्) जहाँ (वा) अथवा अन्यत्र निकृष्ट व्यवहार में (दिवि) शुद्ध व्यवहार में (स्थ) हूजिये वहाँ (अतः) इस कारण से (नः) हम लोगों को उत्तम व्यवहार में स्थापित कीजिये (उत, वा) और अथवा हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशित आत्मावाले ! (अस्य) इसके (वित्तात्) धन से और (हविषः) भोग करने योग्य से (यत्) जिसको (नु) निश्चय हम लोग (यजाम) प्रेरणा करें, वहाँ आप भी प्रेरणा करिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ व्यवहारों में यथायोग्य वर्त्ताव करके उत्तम ऐश्वर्य्यवाले होते हैं, उनका सब लोग सत्कार करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे सुभगासो रुद्रा मरुतो ! यूयं यदुत्तमे मध्यमे वावमे यद्वान्यत्रावमे दिवि वा स्थ तत्रातो नोऽस्मानुत्तमे व्यवहारे स्थापयत। उत वा हे अग्नेऽस्य वित्ताद्धविषो यन्नु वयं यजाम तत्र त्वमपि यजस्व ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यत्र (उत्तमे) [उत्तमे] व्यवहारे (मरुतः) मनुष्याः (मध्यमे) मध्यस्थे (वा) (यत्) यत्र (वा) (अवमे) निकृष्टे (सुभगासः) उत्तमैश्वर्याः (दिवि) शुद्धे व्यवहारे (स्थ) भवत (अतः) अस्मात् कारणात् (नः) अस्मान् (रुद्राः) मध्यस्था विद्वांसः (उत) (वा) (नु) (अस्य) (अग्ने) पावकवत् प्रकाशितात्मन् (वित्तात्) (हविषः) भोक्तुमर्हात् (यत्) यम् (यजाम) प्रेरयेम ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या उत्तममध्यमकनिष्ठेषु व्यवहारेषु यथावद्वर्त्तित्वोत्तमैश्वर्या जायन्ते तान् सर्वे सत्कुर्य्युः ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ व्यवहारात यथायोग्य वागून उत्तम ऐश्वर्यवान होतात त्यांचा सर्व लोकांनी सत्कार करावा. ॥ ६ ॥