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आ ते॑ अग्न इधीमहि द्यु॒मन्तं॑ देवा॒जर॑म्। यद्ध॒ स्या ते॒ पनी॑यसी स॒मिद्दी॒दय॑ति॒ द्यवीषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥४॥

English Transliteration

ā te agna idhīmahi dyumantaṁ devājaram | yad dha syā te panīyasī samid dīdayati dyavīṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

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Pad Path

आ। ते॒। अ॒ग्ने॒। इ॒धी॒म॒हि॒। द्यु॒ऽमन्त॑म्। दे॒व॒। अ॒जर॑म्। यत्। ह॒। स्या। ते॒। पनी॑यसी। स॒म्ऽइत्। दी॒दय॑ति। द्यवि॑। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:6» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अग्निविद्या के जाननेवाले विद्वान् के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देव) सुख के देनेवाले (अग्ने) विद्वन् ! आप (द्युमन्तम्) प्रकाशित (अजरम्) जरावस्था से रहित अग्नि को प्रज्वलित करते हो और (यत्) जो (ते) आपकी (पनीयसी) अतीव प्रशंसा करने योग्य (समित्) समिध् है (स्या) वह (ते) आपके (द्यवि) प्रकाश में (दीदयति) प्रज्वलित की जाती है और जिससे (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये (इषम्) अन्न आदि को (ह) निश्चय से हम लोग (आ, इधीमहि) प्रकाशित करें, उससे स्तुति करनेवालों के लिये अन्न आदि को आप (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! जिस अग्नि आदि की विद्या को आप जानते हैं और जिस विद्या से आपकी प्रशंसा होती है, उसका हम लोगों को बोध दीजिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निविद्याविद्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे देवाऽग्ने ! त्वं द्युमन्तमजरमग्निं प्रदीपयसि यद्या ते पनीयसी समित् स्या ते द्यवि दीदयति येन स्तोतृभ्य इषं ह वयमेधीमहि तया स्तोतृभ्य इषं त्वमा भर ॥४॥

Word-Meaning: - (आ) (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (इधीमहि) प्रदीपयेम (द्युमन्तम्) दीप्तिमन्तम् (देव) सुखप्रदातः (अजरम्) जरारहितम् (यत्) या (ह) किल (स्या) सा (ते) तव (पनीयसी) अतीव प्रशंसनीया (समित्) प्रदीप्ता (दीदयति) प्रदीप्यते (द्यवि) प्रकाशे (इषम्) अन्नादिकम् (स्तोतृभ्यः) (आ) (भर) ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! यामग्न्यादिविद्यां भवाञ्जानाति यया भवतः प्रशंसा जायते तामस्मान् बोधय ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! ज्या अग्नी इत्यादी विद्येला तुम्ही जाणता व ज्या विद्येने तुमची प्रशंसा होते त्याचा आम्हाला बोध होऊ दे ॥ ४ ॥