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उ॒त स्य वा॒ज्य॑रु॒षस्तु॑वि॒ष्वणि॑रि॒ह स्म॑ धायि दर्श॒तः। मा वो॒ यामे॑षु मरुतश्चि॒रं क॑र॒त्प्र तं रथे॑षु चोदत ॥७॥

English Transliteration

uta sya vājy aruṣas tuviṣvaṇir iha sma dhāyi darśataḥ | mā vo yāmeṣu marutaś ciraṁ karat pra taṁ ratheṣu codata ||

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Pad Path

उ॒त। स्यः। वा॒जी। अ॒रु॒षः। तु॒वि॒ऽस्वनिः॑। इ॒ह। स्म॒। धा॒यि॒। द॒र्श॒तः। मा। वः॒। यामे॑षु। म॒रु॒तः॒। चि॒रम्। क॒र॒त्। प्र। तम्। रथे॑षु। चो॒द॒त॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:56» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) मनुष्यो ! जो (वाजी) वेगवान् (इह) इस में (अरुषः) मर्मस्थल के (तुविष्वणिः) बल का सेवी (दर्शतः) देखने योग्य (धायि) धारण किया जाता है (स्यः) वह (यामेषु) यम आदि से युक्त उत्तम व्यवहारों वा प्रहरों में (वः) आप लोगों को (चिरम्) बहुत कालपर्य्यन्त (मा) मत (स्म) ही (करत्) करे अर्थात् न निषेध करे (तम्, उत) उसी को (रथेषु) रथों में (प्र, चोदत) प्रेरित करो ॥७॥
Connotation: - जो अग्निविद्या को धारण करते हैं, उनका सब समय में सत्कार करो ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यो वाजी इहाऽरुषस्तुविष्वणिर्दर्शतो धायि स्यो यामेषु वश्चिरं मा स्म करत्तमुत रथेषु प्र चोदत प्रेरयत ॥७॥

Word-Meaning: - (उत) (स्यः) सः (वाजी) वेगवान् (अरुषः) मर्मणः (तुविष्वणिः) बलसेवी (इह) अस्मिन् (स्म) (धायि) ध्रियते (दर्शतः) द्रष्टव्यः (मा) (वः) युष्मान् (यामेषु) यमादियुक्तशुभव्यवहारेषु प्रहरेषु वा (मरुतः) मानवाः (चिरम्) (करत्) कुर्यात् (प्र) (तम्) (रथेषु) (चोदत) ॥७॥
Connotation: - येऽग्निविद्यां धरन्ति तान् सर्वदा सत्कुरुत ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्यांना अग्निविद्या येते त्यांचा सदैव सत्कार करा. ॥ ७ ॥