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नि ये रि॒णन्त्योज॑सा॒ वृथा॒ गावो॒ न दु॒र्धुरः॑। अश्मा॑नं चित्स्व॒र्यं१॒॑ पर्व॑तं गि॒रिं प्र च्या॑वयन्ति॒ याम॑भिः ॥४॥

English Transliteration

ni ye riṇanty ojasā vṛthā gāvo na durdhuraḥ | aśmānaṁ cit svaryam parvataṁ girim pra cyāvayanti yāmabhiḥ ||

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Pad Path

नि। ये। रि॒णन्ति॑। ओज॑सा। वृथा॑। गावः॑। न। दुः॒ऽधुरः॑। अश्मा॑नम्। चि॒त्। स्व॒र्य॑म्। पर्व॑त॒म्। गि॒रिम्। प्र। च्या॒व॒य॒न्ति॒। याम॑ऽभिः ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:56» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:3» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (ये) जो मनुष्य (ओजसा) पराक्रम से (नि, रिणन्ति) प्राप्त होते हैं (चित्) और जो (यामभिः) प्रहरों से (स्वर्यम्) शब्दों में श्रेष्ठ (पर्वतम्) पर्वत के सदृश ऊँचे (गिरिम्) शब्द करानेवाले (अश्मानम्) मेघ को (दुर्धुरः) दूरगत हैं धुरा जिनकी उनके (न) समान (प्र, च्यावयन्ति) गिराते हैं और (वृथा) व्यर्थ निज अर्थ के विना (गावः) गौओं के सदृश होते हैं, वे सब से सत्कार करने योग्य होते हैं ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य की किरणें मेघ को नीचे गिराती हैं, वैसे विद्वान् लोग दोषों को दूर करते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

ये मनुष्या ओजसा नि रिणन्ति ये चिदपि यामभिः स्वर्यं पर्वतं गिरिमश्मानं दुर्धुरो न प्र च्यावयन्ति वृथा गावो न भवन्ति ते सर्वैः सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (नि) (ये) (रिणन्ति) प्राप्नुवन्ति गच्छन्ति वा (ओजसा) पराक्रमेण (वृथा) (गावः) (न) इव (दुर्धुरः) दुर्गता धुरो येषान्ते (अश्मानम्) मेघम् (चित्) अपि (स्वर्यम्) स्वरेषु शब्देषु साधुम् (पर्वतम्) पर्वतमिवोच्छ्रितं (गिरिम्) यो गृणाति शब्दयति तम् (प्र) (च्यावयन्ति) निपातयन्ति (यामभिः) प्रहरैः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा सूर्यकिरणाः मेघमधः पातयन्ति तथा विद्वांसो दोषन्निपातयन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी सूर्यकिरणे मेघांना खाली पाडतात तसे विद्वान लोक दोष नष्ट करतात. ॥ ४ ॥