एता॒ धियं॑ कृ॒णवा॑मा सखा॒योऽप॒ या मा॒ताँ ऋ॑णु॒त व्र॒जं गोः। यया॒ मनु॑र्विशिशि॒प्रं जि॒गाय॒ यया॑ व॒णिग्व॒ङ्कुरापा॒ पुरी॑षम् ॥६॥
etā dhiyaṁ kṛṇavāmā sakhāyo pa yā mātām̐ ṛṇuta vrajaṁ goḥ | yayā manur viśiśipraṁ jigāya yayā vaṇig vaṅkur āpā purīṣam ||
आ। इ॒त॒। धिय॑म्। कृ॒णवा॑म। स॒खा॒यः। अप॑। या। मा॒ता। ऋ॒णु॒त। व्र॒जम्। गोः। यया॑। मनुः॑। वि॒शि॒ऽशि॒प्रम्। जि॒गाय॑। यया॑। व॒णिक्। व॒ङ्कुः। आप॑। पुरी॑षम् ॥६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को उत्तम बुद्धि कैसे प्राप्त होनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः प्रज्ञा कथं प्राप्तव्येत्याह ॥
हे मनुष्या ! यथा मनुर्विशिशिप्रं जिगाय यया वङ्कुर्वणिक् पुरीषमापा तां धियं सखायो वयं कृणवामा यथा या माता गोर्व्रजं करोति दुःखमप नयति तथैतं यूयमृणुत धियमेता ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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