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शृ॒णोतु॑ न ऊ॒र्जां पति॒र्गिरः॒ स नभ॒स्तरी॑याँ इषि॒रः परि॑ज्मा। शृ॒ण्वन्त्वापः॒ पुरो॒ न शु॒भ्राः परि॒ स्रुचो॑ बबृहा॒णस्याद्रेः॑ ॥१२॥

English Transliteration

śṛṇotu na ūrjām patir giraḥ sa nabhas tarīyām̐ iṣiraḥ parijmā | śṛṇvantv āpaḥ puro na śubhrāḥ pari sruco babṛhāṇasyādreḥ ||

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Pad Path

शृ॒णोतु॑। नः॒। ऊ॒र्जाम्। पतिः॑। गि॑रः। सः। नभः॑। तरी॑यान्। इ॒षि॒रः। परि॑ऽज्मा। शृ॒ण्वन्तु॑। आपः॑। पुरः॑। न। शु॒भ्राः। परि॑। स्रुचः॑। ब॒बृ॒हा॒णस्य॑। अद्रेः॑ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:41» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (सः) वह (नभः) जल (तरीयान्) तैरने और (इषिरः) प्राप्त होने योग्य (परिज्मा) सर्वत्र प्राप्त होनेवाला (ऊर्जाम्) बल से युक्त सेनाओं वा अन्नादिकों का (पतिः) स्वामी पालन करनेवाला (नः) हम लोगों की (गिरः) उत्तम शिक्षा से युक्त वाणियों को (शृणोतु) सुने तथा (शुभ्राः) श्वेत वर्णवाले (पुरः) नगरों के (न) सदृश (आपः) और जलों के सदृश विद्याओं से व्याप्त विद्वान् जन (नः) हम लोगों की वाणियों को सुनो (बबृहाणस्य) उत्तम प्रकार बढ़े (अद्रेः) मेघ के (स्रुचः) चलनेवालों के सदृश हम लोगों की वाणियों को विद्वान् जन (परि, शृण्वण्तु) सुनें ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । वे ही जन विद्वान् होने योग्य हैं जो विद्वानों से पढ़ी हुई विद्या की परीक्षा को प्रसन्नता से देते हैं और वे ही अध्यापक विद्यार्थियों को विद्वान् कर सकते हैं, जो प्रीति से उत्तम प्रकार पढ़ा के विरोधियों के सदृश परीक्षा लेते हैं। जो इस प्रकार दोनों प्रयत्न करते हैं, वे नदी की उन्नति के समान अच्छे प्रकार बढ़ते हैं ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्याः ! स नभस्तरीयाँ इषिरः परिज्मोर्जां पतिर्नो गिरः शृणोतु शुभ्राः पुरो नापो नोऽस्माकं गिरः शृण्वन्तु बबृहाणस्याऽद्रेः स्रुच इवास्माकं वाचः विद्वांसः परि शृण्वन्तु ॥१२॥

Word-Meaning: - (शृणोतु) (नः) अस्माकम् (ऊर्जाम्) बलयुक्तानां सेनानामन्नादीनां वा (पतिः) स्वामी पालकः (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (सः) (नभः) जलम्। नभ इति साधारणनामसु पठितम्। (निघं०१.४) (तरीयान्) तरणीयः (इषिरः) गन्तव्यः (परिज्मा) यः परितः सर्वतो गच्छति सः (शृण्वन्तु) (आपः) जलानीव व्याप्तविद्या विद्वांसः (पुरः) नगराणि (न) इव (शुभ्राः) श्वेताः (परि) सर्वतः (स्रुचः) गमनशीलाः (बबृहाणस्य) प्रवृद्धस्य (अद्रेः) मेघस्य ॥१२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । त एव विद्वांसो भवितुमर्हन्ति ये विद्वद्भ्योऽधीतपरीक्षां प्रसन्नतया ददति त एवाऽध्यापका विद्यार्थिनो विदुषः कर्त्तुं शक्नुवन्ति ये प्रीत्या सम्यगध्याप्य विरोधिवत्परीक्षयन्ति। य एवमुभये प्रयतन्ते ते नद्योन्नतिवत् प्रवर्धन्ते ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्वानांकडून ग्रहण केलेल्या विद्येची प्रसन्नतेने परीक्षा देतात तेच विद्वान होण्यायोग्य असतात. जे प्रेमाने उत्तम प्रकारे शिकवून विरोधी लोकांप्रमाणे परीक्षा घेतात तेच अध्यापक विद्यार्थ्यांना विद्वान करू शकतात. जे या प्रकारे प्रयत्न करतात. ते नदी जशी वाढते तसे चांगल्या प्रकारे वाढतात. ॥ १२ ॥