Go To Mantra

यदि॑न्द्र चित्र मे॒हनास्ति॒ त्वादा॑तमद्रिवः। राध॒स्तन्नो॑ विदद्वस उभयाह॒स्त्या भ॑र ॥१॥

English Transliteration

yad indra citra mehanāsti tvādātam adrivaḥ | rādhas tan no vidadvasa ubhayāhasty ā bhara ||

Mantra Audio
Pad Path

यत्। इ॒न्द्र॒। चि॒त्र॒। मे॒हना॑। अस्ति॑। त्वाऽदा॑तम्। अ॒द्रि॒ऽवः॒। राधः॑। तत्। नः॒। वि॒द॒द्व॒सो॒ इति॑ विदत्ऽवसो। उ॒भ॒या॒ह॒स्ति। आ। भ॒र॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:39» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले उनचालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अद्रिवः) सूर्य के सदृश विद्या के प्रकाश करनेवाले (विदद्वसो) धन को प्राप्त हुए (चित्र) अद्भुत गुण, कर्म्म और स्वभाववाले (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य से युक्त ! (यत्) जो (त्वादातम्) आपसे शुद्ध किया (राधः) द्रव्य (मेहना) वृष्टि के सदृश (अस्ति) है (तत्) उस (उभयाहस्ति) उभयाहस्ति अर्थात् दो प्रकार के हाथ प्रवृत्त होते हैं जिसमें ऐसे को (नः) हम लोगों के लिये (आ, भर) सब प्रकार धारण कीजिये ॥१॥
Connotation: - वही राजा धन से युक्त वा कुशली होवे, जो वृष्टि के सदृश अन्यों के मनोरथों को वर्षावे ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रगुणानाह ॥

Anvay:

हे अद्रिवो विदद्वसो चित्रेन्द्र ! यत्त्वादातं राधो मेहनेवास्ति तदुभयाहस्ति न आ भर ॥१॥

Word-Meaning: - (यत्) (इन्द्र) विद्यैश्वर्य्ययुक्त (चित्र) अद्भुतगुणकर्मस्वभाव (मेहना) वृष्टिः (अस्ति) (त्वादातम्) त्वया शोधितम् (अद्रिवः) सूर्य्य इव विद्याप्रकाशक (राधः) द्रव्यम् (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (विदद्वसो) लब्धधन (उभयाहस्ति) उभये हस्ता प्रवर्त्तन्ते यस्मिँस्तत् (आ, भर) ॥१॥
Connotation: - स एव राजा धनाढ्यो वा सुकृती स्याद्यो वृष्टिवदन्येषां कामान् वर्षेत् ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इन्द्र, राजा, प्रजा व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो राजा पर्जन्याप्रमाणे इतरांचे मनोरथ पूर्ण करतो तोच राजा धनवान व चांगले कार्य करणारा असतो. ॥ १ ॥