उ॒रोष्ट॑ इन्द्र॒ राध॑सो वि॒भ्वी रा॒तिः श॑तक्रतो। अधा॑ नो विश्वचर्षणे द्यु॒म्ना सु॑क्षत्र मंहय ॥१॥
uroṣ ṭa indra rādhaso vibhvī rātiḥ śatakrato | adhā no viśvacarṣaṇe dyumnā sukṣatra maṁhaya ||
उ॒रोः। ते॒। इ॒न्द्र॒। राध॑सः। वि॒ऽभ्वी। रा॒तिः। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। अध॑। नः॒। वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒। द्यु॒म्ना। सु॒ऽक्ष॒त्र॒। मं॒ह॒य॒ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब पाँच ऋचावाले अड़तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथेन्द्रगुणानाह ॥
हे विश्वचर्षणे शतक्रतो सुक्षत्रेन्द्र ! यस्य त उरो राधसो विभ्वी रातिरस्त्यधा न्यायेन प्रजाः पालयसि स त्वं नोऽस्मान् द्युम्ना मंहय ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात इन्द्र, विद्वान, राजा, प्रजा व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.