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उ॒रोष्ट॑ इन्द्र॒ राध॑सो वि॒भ्वी रा॒तिः श॑तक्रतो। अधा॑ नो विश्वचर्षणे द्यु॒म्ना सु॑क्षत्र मंहय ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uroṣ ṭa indra rādhaso vibhvī rātiḥ śatakrato | adhā no viśvacarṣaṇe dyumnā sukṣatra maṁhaya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒रोः। ते॒। इ॒न्द्र॒। राध॑सः। वि॒ऽभ्वी। रा॒तिः। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। अध॑। नः॒। वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒। द्यु॒म्ना। सु॒ऽक्ष॒त्र॒। मं॒ह॒य॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:38» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले अड़तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्र के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विश्वचर्षणे) सम्पूर्ण देखने योग्य पदार्थों के देखनेवाले (शतक्रतो) अनन्त बुद्धि से युक्त और (सुक्षत्र) सुन्दर क्षत्र वा द्रव्यवाले (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त ! जिन (ते) आपके (उरोः) बहुत (राधसः) धन का (विभ्वी) व्याप्त होनेवाला (रातिः) दान है (अधा) इसके अनन्तर न्याय से प्रजाओं का पालन करते हो वह आप (नः) हम लोगों को (द्युम्ना) यश वा धन से (मंहय) बड़े करिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो पूर्णविद्या से युक्त, असंख्य धन देने और सम्पूर्ण व्यवहारों को जाननेवाला, अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त उत्तम स्वभाव और नम्रता से युक्त होवे, वह राजा प्रजाओं के पालन करने को समर्थ होवे ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रगुणानाह ॥

अन्वय:

हे विश्वचर्षणे शतक्रतो सुक्षत्रेन्द्र ! यस्य त उरो राधसो विभ्वी रातिरस्त्यधा न्यायेन प्रजाः पालयसि स त्वं नोऽस्मान् द्युम्ना मंहय ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उरोः) बहोः (ते) तव (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (राधसः) धनस्य (विभ्वी) व्यापिका (रातिः) दानम् (शतक्रतो) अमितप्रज्ञ (अधा) आनन्तर्य्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (विश्वचर्षणे) समस्तद्रष्टव्यदर्शन (द्युम्ना) यशसा धनेन वा (सुक्षत्र) शोभनं क्षयं द्रव्यं वा यस्य तत्सम्बुद्धौ (मंहय) महतः कुरु ॥१॥
भावार्थभाषाः - यः पूर्णविद्योऽसंख्य[धन]प्रदः सर्वव्यवहारवित्परमैश्वर्य्यः सुशीलो विनयवान् भवेत् स राजा प्रजाः पालयितुं शक्नुयात् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इन्द्र, विद्वान, राजा, प्रजा व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - भावार्थर् - जो पूर्ण विद्येने युक्त, असंख्य धन देणारा, संपूर्ण व्यवहार जाणणारा, अत्यंत ऐश्वर्यवान, उत्तम स्वभावाचा व नम्रतेने युक्त असेल तर तो राजा प्रजेचे पालन करण्यास समर्थ असतो. ॥ १ ॥