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अग्ने॑ पावक रो॒चिषा॑ म॒न्द्रया॑ देव जि॒ह्वया॑। आ दे॒वान्व॑क्षि॒ यक्षि॑ च ॥१॥

English Transliteration

agne pāvaka rociṣā mandrayā deva jihvayā | ā devān vakṣi yakṣi ca ||

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Pad Path

अग्ने॑। पा॒व॒क॒। रो॒चिषा॑। म॒न्द्रया॑। दे॒व॒। जि॒ह्वया॑। आ। दे॒वान्। व॒क्षि॒। यक्षि॑। च॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:26» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले छब्बीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पावक) पवित्र और शुद्धि करने तथा (देव) विद्या के देनेवाले (अग्ने) विद्वन् ! जिससे आप (रोचिषा) अति प्रीति से युक्त (मन्द्रया) विज्ञान और आनन्द देनेवाली (जिह्वया) वाणी से इस संसार में (देवान्) विद्वानों और श्रेष्ठ गुणों वा पदार्थों को (आ, वक्षि) सब ओर से प्राप्त होते वा प्राप्त कराते हो तथा (यक्षि) सत्कार करते और मिलते (च) भी हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥१॥
Connotation: - जो प्रीति से सत्य उपदेशों को कर और विद्वान् तथा श्रेष्ठ गुणों को प्राप्त होकर अन्यों को प्राप्त कराते हैं, वे ही आदर करने योग्य होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निपदवाच्यविद्वद्गुणानाह ॥

Anvay:

हे पावक देवाग्ने ! यतस्त्वं रोचिषा मन्द्रया जिह्वयाऽत्र देवाना वक्षि यक्षि च तस्मादर्चनीयोऽसि ॥१॥

Word-Meaning: - (अग्ने) विद्वन् (पावक) पवित्रशुद्धिकर्त्तः (रोचिषा) अतिरुचियुक्तया (मन्द्रया) विज्ञानानन्दप्रदया (देव) विद्याप्रदातः (जिह्वया) वाण्या (आ) समन्तात् (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् पदार्थान् वा (वक्षि) प्राप्नोषि प्रापयसि वा (यक्षि) सत्करोषि सङ्गच्छसे (च) ॥१॥
Connotation: - ये प्रीत्या सत्योपदेशान् कृत्वा विदुषो दिव्यान् गुणांश्च प्राप्य प्रापयन्ति त एव पूजनीया भवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे प्रेमाने सत्याचा उपदेश करून विद्वान बनतात व श्रेष्ठ गुण प्राप्त करून इतरांना प्राप्त करवितात तेच आदरास पात्र असतात. ॥ १ ॥