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म॒नु॒ष्वत्त्वा॒ नि धी॑महि मनु॒ष्वत्समि॑धीमहि। अग्ने॑ मनु॒ष्वद॑ङ्गिरो दे॒वान्दे॑वय॒ते य॑ज ॥१॥

English Transliteration

manuṣvat tvā ni dhīmahi manuṣvat sam idhīmahi | agne manuṣvad aṅgiro devān devayate yaja ||

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Pad Path

म॒नु॒ष्वत्। त्वा॒। नि। धी॒म॒हि॒। म॒नु॒ष्वत्। सम्। इ॒धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। म॒नु॒ष्वत्। अ॒ङ्गि॒रः॒। दे॒वान्। दे॒व॒ऽय॒ते। य॒ज॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:21» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चार ऋचावाले इक्कीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अङ्गिरः) प्राणों के सदृश प्रिय (अग्ने) विद्वन् ! जैसे हम लोग कार्य्य की सिद्धि के लिये अग्नि को (मनुष्वत्) मनुष्य को जैसे वैसे (नि, धीमहि) निरन्तर धारण होवें और (देवयते) श्रेष्ठ गुणों की कामना करते हुए के लिये (देवान्) श्रेष्ठ विद्यायुक्त विद्वानों को (मनुष्वत्) मनुष्यों के समान (सम्, इधीमहि) प्रकाशित करें वैसे (त्वा) आपको उत्तम कर्म्म में स्थित करें और आप (मनुष्वत्) मनुष्य के तुल्य (यज) मिलिये अर्थात् कार्य्यों को प्राप्त हूजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य विचारशील होकर श्रेष्ठ गुणों की कामना करते हैं, वे अग्नि आदि पदार्थों की विद्या को जानें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निविषयमाह ॥

Anvay:

हे अङ्गिरोऽग्ने! यथा वयं कार्यसिद्धयेऽग्निं मनुष्यवन्नि धीमहि देवयते देवान् मनुष्वत् समिधीमहि तथा त्वा सत्यक्रियायां निधीमहि त्वं मनुष्वद्यज ॥१॥

Word-Meaning: - (मनुष्वत्) मनुष्येण तुल्यम् (त्वा) त्वाम् (नि) (धीमहि) निधिमन्तो भवेम (मनुष्वत्) (सम्) (इधीमहि) प्रकाशितान् कुर्याम (अग्ने) विद्वन् (मनुष्वत्) (अङ्गिरः) प्राणा इव प्रिय (देवान्) दिव्यविद्वद्विपश्चितः (देवयते) देवान् दिव्यगुणान् कामयमानाय (यज) सङ्गच्छस्व ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये नरा मननशीला भूत्वा दिव्यान् गुणान् कामयन्ते ते अग्न्यादिपदार्थविद्यां विजानन्तु ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे मननशील असून दिव्य गुणांची इच्छा बाळगतात. ती अग्नी इत्यादी पदार्थविद्या जाणतात. ॥ १ ॥