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आ श्वै॑त्रे॒यस्य॑ ज॒न्तवो॑ द्यु॒मद्व॑र्धन्त कृ॒ष्टयः॑। नि॒ष्कग्री॑वो बृ॒हदु॑क्थ ए॒ना मध्वा॒ न वा॑ज॒युः ॥३॥

English Transliteration

ā śvaitreyasya jantavo dyumad vardhanta kṛṣṭayaḥ | niṣkagrīvo bṛhaduktha enā madhvā na vājayuḥ ||

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Pad Path

आ। श्वै॒त्रै॒यस्य॑। ज॒न्तवः॑। द्यु॒ऽमत्। व॒र्ध॒न्त॒। कृ॒ष्टयः॑। नि॒ष्कऽग्री॑वः। बृ॒हत्ऽउ॑क्थः। ए॒ना। मध्वा॑। न। वा॒ज॒ऽयुः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:19» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जिस (श्वैत्रेयस्य) अन्तरिक्ष में स्थित दिशाओं में उत्पन्न जल के मध्य में (जन्तवः) जीव और (कृष्टयः) मनुष्य (वर्धन्त) वृद्धि को प्राप्त होते हैं (एना) इस (मध्वा) मधुर जल से (वाजयुः) अन्न की कामना करते हुए के (न) सदृश (बृहदुक्थः) अत्यन्त प्रशंसित (निष्कग्रीवः) एक निष्क का जिसमें चार सुवर्ण प्रमाण से युक्त आभूषण जिसकी ग्रीवा में ऐसा पुरुष (द्युमत्) प्रकाश से युक्त सुख को (आ) प्राप्त होता है ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! इस संसार में जितने पदार्थ हैं, वे सब जल ही से होते हैं अर्थात् सब का बीज जल ही है, ऐसा जान कर सब सुखों को प्राप्त होओ ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यस्य श्वैत्रेयस्य मध्ये जन्तवः कृष्टयो वर्धन्तैना मध्वा वाजयुर्न बृहदुक्थो निष्कग्रीवो द्युमत् सुखमा लभते ॥३॥

Word-Meaning: - (आ) (श्वैत्रेयस्य) श्वित्रास्वन्तरिक्षस्थासु दिक्षु भवस्य जलस्य (जन्तवः) जीवाः (द्युमत्) प्रकाशवत् (वर्धन्त) वर्धन्ते (कृष्टयः) मनुष्याः (निष्कग्रीवः) निष्कं चतुस्सौवर्णप्रमितमाभूषणं ग्रीवायां यस्य सः (बृहदुक्थः) महत् प्रशंसितः (एना) एनेन (मध्वा) मधुना (न) इव (वाजयुः) वाजमन्नं कामयमानः ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या ! इह संसारे यावन्तः पदार्थास्सन्ति तावन्तो जलेनैव भवन्ति सर्वेषां बीजं जलमेवास्तीति विज्ञाय सर्वाणि सुखानि लभध्वम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! या जगात जितके पदार्थ आहेत ते जलानेच तयार होतात. अर्थात, सर्वांचे बीज जलच आहे हे जाणून सर्व सुख भोगा. ॥ ३ ॥