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अ॒ग्निर्होता॒ न्य॑सीद॒द्यजी॑यानु॒पस्थे॑ मा॒तुः सु॑र॒भा उ॑ लो॒के। युवा॑ क॒विः पु॑रुनिः॒ष्ठ ऋ॒तावा॑ ध॒र्ता कृ॑ष्टी॒नामु॒त मध्य॑ इ॒द्धः ॥६॥

English Transliteration

agnir hotā ny asīdad yajīyān upasthe mātuḥ surabhā u loke | yuvā kaviḥ puruniṣṭha ṛtāvā dhartā kṛṣṭīnām uta madhya iddhaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। होता॑। नि। अ॒सी॒द॒त्। यजी॑यान्। उ॒पऽस्थे॑। मा॒तुः। सु॒र॒भौ। ऊँ॒ इति॑। लो॒के। युवा॑। क॒विः। पु॒रु॒निः॒ऽस्थः। ऋ॒तऽवा॑। ध॒र्ता। कृ॒ष्टी॒नाम्। उ॒त। मध्ये॑। इ॒द्धः ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:1» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो! जैसे (मध्ये) मध्य में (इद्धः) प्रदीप्त (अग्निः) बिजुली सदृश (यजीयान्) अत्यन्त यज्ञकर्त्ता (युवा) बलवान् (कविः) उत्तम बुद्धिवाला विद्वान् (पुरुनिःष्ठः) अनेक प्रकार की श्रद्धा व बहुत स्थानोंवाला (ऋतावा) सत्य का विभाग करनेवाला (धर्त्ता) और धारण करनेवाला (होता) यज्ञकर्त्ता (सुरभौ) सुगन्धित (मातुः) माता के (उपस्थे) समीप में (लोके) लोक में (नि, असीदत्) निरन्तर स्थित होवे (उ) वही (कृष्टीनाम्) मनुष्यों का (उत) और पशु आदिकों का रक्षक होवे ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि मातारूप वायु में विराजता हुआ बिजुलीरूप से सब को सुख देता है, वैसे ही धार्मिक विद्वान् सब को आनन्द दिलाने के योग्य है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या! यथा मध्य इद्धोऽग्निरिव यजीयान् युवा कविः पुरुनिःष्ठ ऋतावा धर्त्ता होता सुरभौ मातुरुपस्थे लोके न्यसीदत् स उ कृष्टीनामुत पश्वादीनां रक्षकः स्यात् ॥६॥

Word-Meaning: - (अग्निः) विद्युदिव (होता) यज्ञकर्ता (नि) (असीदत्) निषीदेत् (यजीयान्) अतिशयेन यष्टा (उपस्थे) समीपे (मातुः) (सुरभौ) सुगन्धिते (उ) (लोके) (युवा) बलिष्ठः (कविः) क्रान्तप्रज्ञो विपश्चित् (पुरुनिःष्ठः) पुरवो बहुविधा निष्ठा यस्य बहुस्थानो वा (ऋतावा) सत्यविभाजकः (धर्त्ता) (कृष्टीनाम्) मनुष्याणाम् (उत) अपि (मध्ये) (इद्धः) प्रदीप्तः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाग्निर्मातरि वायौ स्थितः सन् विद्युद्रूपेण सर्वान् सुखयति तथैव धार्मिको विद्वान् सर्वानानन्दयितुमर्हति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा मातारूपी अग्नी वायूत स्थित असून विद्युतरूपाने सर्वांना सुख देतो, तसाच धार्मिक विद्वान सर्वांना आनंद देतो. ॥ ६ ॥