वै॒श्वा॒न॒राय॑ मी॒ळ्हुषे॑ स॒जोषाः॑ क॒था दा॑शेमा॒ग्नये॑ बृ॒हद्भाः। अनू॑नेन बृह॒ता व॒क्षथे॒नोप॑ स्तभायदुप॒मिन्न रोधः॑ ॥१॥
vaiśvānarāya mīḻhuṣe sajoṣāḥ kathā dāśemāgnaye bṛhad bhāḥ | anūnena bṛhatā vakṣathenopa stabhāyad upamin na rodhaḥ ||
वै॒श्वा॒न॒राय॑। मी॒ळ्हुषे॑। स॒ऽजोषाः॑। क॒था। दा॒शे॒म॒। अ॒ग्नये॑। बृ॒हत्। भाः। अनू॑नेन। बृ॒ह॒ता। व॒क्षथे॑न। उप॑। स्त॒भा॒य॒त्। उ॒प॒ऽमित्। न। रोधः॑॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब तृतीयाष्टक में पाँचवें अध्याय और चतुर्थ मण्डल में पन्द्रह ऋचावाले पञ्चम सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के दृष्टान्त से राजविषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथाग्निदृष्टान्तेन राजविषयमाह ॥
हे राजन् ! यस्त्वं बृहद्भा उपमिद्रोधो नानूनेन बृहता वक्षथेन राज्यमुप स्तभायत्तस्मै वैश्वानराय मीळ्हुषेऽग्नये सजोषा वयं सुखं कथा दाशेम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात बुद्धिमान राजा, अध्यापक, उपदेशक प्रश्नकर्ता व समाधानकर्त्याचे गुण वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.