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क॒था शर्धा॑य म॒रुता॑मृ॒ताय॑ क॒था सू॒रे बृ॑ह॒ते पृ॒च्छ्यमा॑नः। प्रति॑ ब्र॒वोऽदि॑तये तु॒राय॒ साधा॑ दि॒वो जा॑तवेदश्चिकि॒त्वान् ॥८॥

English Transliteration

kathā śardhāya marutām ṛtāya kathā sūre bṛhate pṛcchyamānaḥ | prati bravo ditaye turāya sādhā divo jātavedaś cikitvān ||

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Pad Path

क॒था। शर्धा॑य। म॒रुता॑म्। ऋ॒ताय॑। क॒था। सू॒रे। बृ॒ह॒ते। पृ॒च्छ्यमा॑नः। प्रति॑। ब्र॒वः॒। अदि॑तये। तु॒राय॑। साध॑। दि॒वः। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। चि॒कि॒त्वान्॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में राजविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (जातवेदः) प्रसिद्ध उत्तम ज्ञानयुक्त (सूरे) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान सेना में (पृच्छ्यमानः) पूँछे गए आप (मरुताम्) पवनों का जैसे वैसे (ऋताय) सत्य के और (बृहते) बढ़ते हुए (शर्धाय) बल के लिये (कथा) किस प्रकार से (ब्रवः) कहो (तुराय) शीघ्रता करते हुए (अदितये) नहीं नाश होनेवाले अन्तरिक्ष के लिये (कथा) किस प्रकार से (प्रति) निश्चित कहो (चिकित्वान्) ज्ञानवान् होकर (दिवः) प्रकाशों को (साध) सिद्ध करो ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा लोग वायु के सदृश अपने बल को बढ़ाते, योधा लोगों के शिक्षक और परीक्षकों का सत्कार करते और प्रश्नोत्तर से सब को जान उनके द्वारा कार्य सिद्ध करते हैं, वे सूर्य्य के सदृश ऐश्वर्य के प्रकाशक होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे जातवेदः ! सूरे पृच्छ्यमानस्त्वं मरुतामिवर्ताय बृहते शर्धाय कथा ब्रवः तुरायाऽदितये कथा प्रति ब्रवश्चिकित्वान्सन् दिवः साध ॥८॥

Word-Meaning: - (कथा) (शर्धाय) बलाय (मरुताम्) वायूनामिव (ऋताय) सत्याय (कथा) (सूरे) सूर्य्य इव वर्त्तमाने सैन्ये (बृहते) वर्द्धमानाय (पृच्छ्यमानः) (प्रति) (ब्रवः) ब्रूयाः (अदितये) अविनष्टायाऽन्तरिक्षाय (तुराय) त्वरमाणाय (साध)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (दिवः) प्रकाशान् (जातवेदः) प्रसिद्धप्रज्ञान (चिकित्वान्) ज्ञानवान् भूत्वा ॥८॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजानो वायुवत्स्वबलं वर्धयन्ति योद्धॄणां शिक्षकान् परीक्षकान् सत्कुर्वन्ति प्रश्नोत्तराभ्यां सर्वान् विज्ञाय तैः कार्य्याणि साध्नुवन्ति ते सूर्य्य इवैश्वर्य्यप्रकाशका भवन्ति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजे वायूप्रमाणे आपले बल वाढवितात. योद्धे, शिक्षक व परीक्षकांचा सत्कार करतात. प्रश्नोत्तराद्वारे सर्व जाणून त्याद्वारे कार्य सिद्ध करतात ते सूर्याप्रमाणे ऐश्वर्याचे प्रकाशक असतात. ॥ ८ ॥