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क॒था म॒हे पु॑ष्टिंभ॒राय॑ पू॒ष्णे कद्रु॒द्राय॒ सुम॑खाय हवि॒र्दे। कद्विष्ण॑व उरुगा॒याय॒ रेतो॒ ब्रवः॒ कद॑ग्ने॒ शर॑वे बृह॒त्यै ॥७॥

English Transliteration

kathā mahe puṣṭimbharāya pūṣṇe kad rudrāya sumakhāya havirde | kad viṣṇava urugāyāya reto bravaḥ kad agne śarave bṛhatyai ||

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Pad Path

क॒था। म॒हे। पु॒ष्टि॒म्ऽभ॒राय॑। पू॒ष्णे। कत्। रु॒द्राय॑। सुऽम॑खाय। ह॒विः॒ऽदे। कत्। विष्ण॑वे। उ॒रु॒ऽगा॒याय॑। रेतः॑। ब्रवः॑। कत्। अ॒ग्ने॒। शर॑वे। बृ॒ह॒त्यै॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्यार्थियों की परीक्षा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥७॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! आप (रेतः) जल के सदृश शान्त अर्थात् कोमलचित्त होके (महे) बड़े (पुष्टिम्भराय) पुष्टि धारण कराने (पूष्णे) पोषण करनेवाले के लिये (कथा) किस प्रकार (ब्रवः) कहो (सुमखाय) उत्तम प्रकार यज्ञसम्पादन करने और (हविर्दे) देने योग्य वस्तुओं को देनेवाले के लिये तथा (रुद्राय) शत्रुओं में प्रबल के लिये (कत्) कब कहो (उरुगायाय) बहुत प्रशंसा करने योग्य (विष्णवे) व्यापक परमेश्वर के लिये (कत्) कब कहो (शरवे) दुष्टों के नाश करनेवाली (बृहत्यै) बड़ी सेना के लिये (कत्) कब कहो ॥७॥
Connotation: - अध्यापक लोगों को विद्यार्थियों को पढ़ा के प्रत्येक अठवाड़े, प्रत्येक पक्ष, प्रतिमास, प्रतिछमाही और प्रतिवर्ष परीक्षा यथायोग्य करनी चाहिये, जिससे कि राजकुमारादि सब भ्रमरहित, ज्ञानविशिष्ट, उत्तमस्वभावयुक्त शरीर और आत्मा के बल सहित धर्मिष्ठ सौ वर्ष जीने और न्याय से राज्य के पालन करनेवाले होवें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिष्यपरीक्षाविषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं रेत इव सन् महे पुष्टिम्भराय पूष्णे कथा ब्रवः सुमखाय हविर्दे रुद्राय कद् ब्रवः। उरुगायाय विष्णवे कद् ब्रवः शरवे बृहत्यै कद् ब्रवः ॥७॥

Word-Meaning: - (कथा) केन प्रकारेण (महे) महते (पुष्टिम्भराय) (पूष्णे) पोषकाय (कत्) कदा (रुद्राय) शत्रुषूग्राय (सुमखाय) सुष्ठु यज्ञसम्पादकाय (हविर्दे) यो हवींषि दातव्यानि ददाति तस्मै (कत्) कदा (विष्णवे) व्यापकाय परमेश्वराय (उरुगायाय) बहुप्रशंसाय (रेतः) उदकमिव शान्तो मृदुर्भूत्वा (ब्रवः) (कत्) (अग्ने) विद्वन् (शरवे) दुष्टानां हिंसकाय (बृहत्यै) महत्यै सेनायै ॥७॥
Connotation: - अध्यापकैर्विद्यार्थिनोऽध्याप्य प्रत्यष्टाऽहं प्रतिपक्षं प्रतिमासं प्रत्ययनं प्रतिवर्षञ्च तेषां परीक्षा यथार्हा कर्त्तव्या येन राजकुमारादयः सर्वे निर्भ्रमज्ञानाः सन्तः सुशीलाः शरीरात्मबलयुक्ताः धर्मिष्ठाः शतायुषो न्यायेन राज्यपालकाः स्युः ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - अध्यापकांनी विद्यार्थ्यांना शिकवून प्रत्येक आठवडा, प्रत्येक पंधरवडा, प्रत्येक मास, प्रत्येक सहामाही व प्रत्येक वर्षी यथायोग्य परीक्षा घ्यावी. ज्यामुळे राजकुमार इत्यादी सर्वजण भ्रमरहित, ज्ञानविशिष्ट, उत्तम स्वभाव-युक्त शरीर व आत्मा बलयुक्त, धार्मिक शतायुषी व न्यायाने राज्याचे पालन करणारे व्हावेत. ॥ ७ ॥