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क॒विं श॑शासुः क॒वयोऽद॑ब्धा निधा॒रय॑न्तो॒ दुर्या॑स्वा॒योः। अत॒स्त्वं दृश्याँ॑ अग्न ए॒तान्प॒ड्भिः प॑श्ये॒रद्भु॑ताँ अ॒र्य एवैः॑ ॥१२॥

English Transliteration

kaviṁ śaśāsuḥ kavayo dabdhā nidhārayanto duryāsv āyoḥ | atas tvaṁ dṛśyām̐ agna etān paḍbhiḥ paśyer adbhutām̐ arya evaiḥ ||

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Pad Path

क॒वि॑म्। श॒शा॒सुः॒। क॒वयः॑। अद॑ब्धाः। नि॒ऽधा॒रय॑न्तः। दुर्या॑सु। आ॒योः। अतः॑। त्वम्। दृश्या॑न्। अ॒ग्ने॒। ए॒तान्। प॒ट्ऽभिः। प॒श्येः॒। अद्भु॑तान्। अ॒र्यः। एवैः॑॥१२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशमान विद्वन् पुरुष ! जैसे (अदब्धाः) अहिंसनीय (कवयः) बुद्धिमान् पण्डित लोग (कविम्) उत्तम बुद्धिवाले को (दुर्यासु) गृहों में अहिंसनीय (निधारयन्तः) धारण करते हुए (शशासुः) शासन करते हैं (आयोः) जीवन की वृद्धि का शासन करते हैं (अतः) इस कारण से (त्वम्) आप (एवैः) प्राप्त (पड्भिः) विज्ञान आदिकों से (एतान्) इन प्रत्यक्ष (अद्भुतान्) आश्चर्ययुक्त गुण, कर्म और स्वभाववाले (दृश्यान्) देखने योग्य श्रेष्ठ बुद्धिवाले जनों को (अर्यः) स्वामी के समान (पश्येः) देखिये ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो अध्यापक और उपदेशक लोग बुद्धिमान् पुरुषों को पढ़ाते और उपदेश देते हैं, उनका सदा ही सत्कार करो, जिससे कि मनुष्य लोग आश्चर्ययुक्त गुण, कर्म और स्वभाववाले होवें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथा अदब्धाः कवयः कविं दुर्यास्वदब्धा निधारयन्तः शशासुरायोर्वर्धनं शशासुरतस्त्वमेवैः पड्भिरेतानद्भुतान् दृश्यान् कवीनर्य इव पश्येः ॥१२॥

Word-Meaning: - (कविम्) कान्तप्रज्ञं मेधाविनम् (शशासुः) शासति (कवयः) प्राज्ञा विपश्चितः (अदब्धाः) अहिंसनीयाः (निधारयन्तः) (दुर्यासु) गृहेषु (आयोः) जीवनस्य (अतः) (त्वम्) (दृश्यान्) द्रष्टव्यान् (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमानविद्य (एतान्) प्रत्यक्षान् (पड्भिः) विज्ञानादिभिः (पश्येः) (अद्भुतान्) आश्चर्यगुणकर्मस्वभावान् (अर्यः) (एवैः) प्राप्तैः ॥१२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! येऽध्यापकोपदेशका बुद्धिमतोऽध्यापयन्त्युपदिशन्ति तान्त्सदैव सत्कुरु यतो मनुष्या आश्चर्यगुणकर्मस्वभावाः स्युः ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा, जे अध्यापक व उपदेशक बुद्धिमान पुरुषांना शिकवितात व उपदेश देतात त्यांचा सदैव सत्कार करा. ज्यामुळे माणसे आश्चर्ययुक्त गुण, कर्म स्वभावयुक्त व्हावीत. ॥ १२ ॥