नाहमतो॒ निर॑या दु॒र्गहै॒तत्ति॑र॒श्चता॑ पा॒र्श्वान्निर्ग॑माणि। ब॒हूनि॑ मे॒ अकृ॑ता॒ कर्त्वा॑नि॒ युध्यै॑ त्वेन॒ सं त्वे॑न पृच्छै ॥२॥
nāham ato nir ayā durgahaitat tiraścatā pārśvān nir gamāṇi | bahūni me akṛtā kartvāni yudhyai tvena saṁ tvena pṛcchai ||
न। अ॒हम्। अतः॑। निः। अ॒य॒। दुः॒ऽगहा॑। ए॒तत्। ति॒र॒श्चता॑। पा॒र्श्वात्। निः। ग॒मा॒नि॒। ब॒हूनि॑। मे॒। अकृ॑ता। कर्त्वा॑नि। युध्यै॑। त्वे॒न॒। सम्। त्वे॒न॒। पृ॒च्छै॒ ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर दृष्टान्त से पूर्वोक्त विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्दृष्टान्तेन पूर्वोक्तमाह ॥
हे विद्वन् ! यथाऽहं दुर्गहा न भवेयं पार्श्वान्निर्गमाणि मे बहून्यकृता कर्त्वानि कर्माणि सन्ति तिरश्चता त्वेन युध्यै त्वेन सम्पृच्छै तथात्वमत एतन्निरय ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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