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स दू॒तो विश्वेद॒भि व॑ष्टि॒ सद्मा॒ होता॒ हिर॑ण्यरथो॒ रंसु॑जिह्वः। रो॒हिद॑श्वो वपु॒ष्यो॑ वि॒भावा॒ सदा॑ र॒ण्वः पि॑तु॒मती॑व सं॒सत् ॥८॥

English Transliteration

sa dūto viśved abhi vaṣṭi sadmā hotā hiraṇyaratho raṁsujihvaḥ | rohidaśvo vapuṣyo vibhāvā sadā raṇvaḥ pitumatīva saṁsat ||

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Pad Path

सः। दू॒तः। विश्वा॑। इत्। अ॒भि। व॒ष्टि॒। सद्म॑। होता॑। हिर॑ण्यऽरथः। रम्ऽसु॑जिह्वः। रो॒हित्ऽअ॑श्वः। व॒पु॒ष्यः॑। वि॒भाऽवा॑। सदा॑। र॒ण्वः। पि॒तु॒मती॑ऽइव। स॒म्ऽसत्॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (हिरण्यरथः) तेजोमय सुन्दर स्वरूपयुक्त सूर्य्य के सदृश जिसका व्यवहार (रंसुजिह्वः) सुन्दर जिसकी वाणी (रोहिदश्वः) जिसके रक्त आदि गुणों से विशिष्ट अग्नि आदिक घोड़े शीघ्र चलनेवाले वह (वपुष्यः) रूपों में प्रसिद्ध (विभावा) ऐश्वर्य्यवान् (रण्वः) सुन्दर स्वरूपयुक्त (होता) देने वा लेनेवाला होता हुआ राजा (दूतः) दुष्टों को सन्ताप देते हुए के सदृश (विश्वा) सब (सद्म) उत्तम कर्म वा स्थानों की (अभि, वष्टि) कामना करता है (सः) वह (इत्) ही (संसत्) चक्रवर्तियों की सभा (पितुमतीव) जो कि प्रशंसित बहुत अन्न आदि ऐश्वर्य्य से युक्त उसके सदृश (सदा) सब काल में उन्नतिशील होता है ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमा अलङ्कार हैं। जैसे दूतजन राजाओं के हित करने की इच्छा करते हैं, वैसे ही जो राजाजन प्रजा का हित निरन्तर करते हैं, वे राजा और सभासद् पुण्य के भजनेवाले होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यो हिरण्यरथो रंसुजिह्वो रोहिदश्वो वपुष्यो विभावा रण्वो होता सन् राजा दूत इव विश्वा सद्माऽभि वष्टि स इत् संसत् पितुमतीव सदोन्नतिशीलो भवति ॥८॥

Word-Meaning: - (सः) (दूतः) यो दुनोति दुष्टान् परितापयति सः (विश्वा) सर्वाणि (इत्) एव (अभि) (वष्टि) कामयते (सद्म) सद्मान्युत्तमानि कर्माणि स्थानानि वा (होता) दाता आदाता वा (हिरण्यरथः) तेजोमयरमणीयस्वरूपस्सूर्य इव रथो व्यवहारो यस्य सः (रंसुजिह्वः) रमणीयवाक् (रोहिदश्वः) रोहिता रक्तादिगुणविशिष्टा अग्न्यादयोऽश्वा आशुगामिनो यस्य सः (वपुष्यः) वपुष्षु रूपेषु भवः (विभावा) विभववान् (सदा) (रण्वः) रमणीयस्वरूपः (पितुमतीव) प्रशंसितबह्वन्नाद्यैश्वर्य्ययुक्तेव (संसत्) सम्राट्सभा ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा दूता राज्ञां हितं चिकीर्षन्ति तथैव ये राजानः प्रजाहितं सततं कुर्वन्ति ते नृपाः सभासदश्च पुण्यभाजो भवन्ति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे दूत राजांच्या हिताची इच्छा ठेवतात तसेच जे राजे प्रजेचे निरंतर हित करतात ते राजे व सभासद पुण्यवान असतात. ॥ ८ ॥