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स तू नो॑ अ॒ग्निर्न॑यतु प्रजा॒नन्नच्छा॒ रत्नं॑ दे॒वभ॑क्तं॒ यद॑स्य। धि॒या यद्विश्वे॑ अ॒मृता॒ अकृ॑ण्व॒न्द्यौष्पि॒ता ज॑नि॒ता स॒त्यमु॑क्षन् ॥१०॥

English Transliteration

sa tū no agnir nayatu prajānann acchā ratnaṁ devabhaktaṁ yad asya | dhiyā yad viśve amṛtā akṛṇvan dyauṣ pitā janitā satyam ukṣan ||

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Pad Path

सः। तु। नः॒। अ॒ग्निः। न॒य॒तु॒। प्र॒जा॒नन्। अच्छ॑। रत्न॑म्। दे॒वऽभक्तम्। यत्। अ॒स्य॒। धि॒या। यत्। विश्वे॑। अ॒मृताः॑। अकृ॑ण्वन्। द्यौः। पि॒ता। ज॒नि॒ता। स॒त्यम्। उ॒क्ष॒न्॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे (सः) वह (अस्य) इस संसार का (पिता) पालन करने और (जनिता) उत्पन्न करनेवाला (द्यौः) प्रकाशमान (अग्निः) अपने से प्रकाशरूप परमात्मा के सदृश राजा (धिया) बुद्धि से सब को (प्रजानन्) जानता हुआ (नः) हम लोगों को (यत्) जो (देवभक्तम्) देवों से सेवित (रत्नम्) सुन्दर धन को (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त कराता है, वैसे आप (नयतु) प्राप्त कराइये (यत्) जिसमें (तु) फिर (विश्वे) सब (अमृताः) जन्म और मृत्यु से रहित जीव (सत्यम्) सत्य का (उक्षन्) सेवन करते हुए मोक्ष को (अकृण्वन्) करते हैं, वहाँ ही स्थित हो और सत्य का सेवन और धर्म से राज्य का पालन करके मोक्ष को प्राप्त होइये ॥१०॥
Connotation: - हे राजा आदि मनुष्यों ! जैसे सब जगत् का पालन और उत्पन्न करनेवाला परमात्मा दया से सब जीवों के सुख के लिये अनेक प्रकार के पदार्थों को रच और दे के अभिमान नहीं करता है, वैसे ही आप लोग होइये और ईश्वर के उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभावों के तुल्य अपने गुण, कर्म्म और स्वभावों को करके राज्य आदि का पालन करके अन्त में मोक्ष को प्राप्त होओ ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथा सोऽस्य पिता जनिता द्यौरग्निः परमात्मा धिया सर्वं प्रजानन् नोऽस्मान् यद्देवभक्तं रत्नमच्छ नयति तथा भवान्नयतु। यद्यस्मिँस्तु विश्वेऽमृताः सत्यमुक्षँस्तु मोक्षमकृण्वन् तत्रैव स्थित्वा सत्यं सेवित्वा धर्म्मेण राज्यं सम्पाल्य मोक्षमाप्नुहि ॥१०॥

Word-Meaning: - (सः) (तु) पुनः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अग्निः) स्वप्रकाशः परमात्मेव राजा (नयतु) प्रापयतु (प्रजानन्) (अच्छ) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (रत्नम्) रमणीयं धनम् (देवभक्तम्) देवैः सेवितम् (यत्) (अस्य) जगतः (धिया) प्रज्ञया (यत्) यस्मिन् (विश्वे) (अमृताः) जन्ममृत्युरहिता जीवाः (अकृण्वन्) कुर्वन्ति (द्यौः) प्रकाशमानः (पिता) पालकः (जनिता) जनकः (सत्यम्) (उक्षन्) सेवन्ते ॥१०॥
Connotation: - हे राजादयो मनुष्या ! यथा सर्वस्य जगतः पिता जनः परमात्मा दयया सर्वेषां जीवानां सुखाय विविधान् पदार्थान् रचयित्वा दत्वाऽभिमानं न करोति तथैव यूयं भवत। ईश्वरस्य सद्गुणकर्म्मस्वभावैस्तुल्यान्त्स्वगुणकर्म्मस्वभावान् कृत्वा राज्यादिकं पालयित्वाऽन्ते मोक्षमाप्नुत ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजांनो! जसे जगाचे पालन व उत्पन्न करणारा परमात्मा दयार्द्रतेने सर्व जीवांच्या सुखासाठी अनेक प्रकारचे पदार्थ निर्माण करून देतो व अभिमान करीत नाही तसेच तुम्ही व्हा. ईश्वराच्या उत्तम कर्म स्वभावाप्रमाणे आपले गुण, कर्म, स्वभाव बनवून राज्य इत्यादीचे पालन करून शेवटी मोक्ष प्राप्त करा. ॥ १० ॥