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युवा॑ सु॒वासाः॒ परि॑वीत॒ आगा॒त्स उ॒ श्रेया॑न्भवति॒ जाय॑मानः। तं धीरा॑सः क॒वय॒ उन्न॑यन्ति स्वा॒ध्यो॒३॒॑ मन॑सा देव॒यन्तः॑॥

English Transliteration

yuvā suvāsāḥ parivīta āgāt sa u śreyān bhavati jāyamānaḥ | taṁ dhīrāsaḥ kavaya un nayanti svādhyo manasā devayantaḥ ||

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Pad Path

युवा॑। सु॒ऽवासाः॑। परि॑ऽवीतः। आ। अ॒गा॒त्। सः। ऊँ॒ इति॑। श्रेया॑न्। भ॒व॒ति॒। जाय॑मानः। तम्। धीरा॑सः। क॒वयः॑। उत्। न॒य॒न्ति॒। सु॒ऽआ॒ध्यः॑। मन॑सा। दे॒व॒ऽयन्तः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:8» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कैसा विद्वान् हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो आठवें वर्ष से लेकर ब्रह्मचर्य्य के साथ विद्या को ग्रहण किये (युवा) युवावस्था को प्राप्त (सुवासाः) सुन्दर वस्त्रों को धारण किये (परिवीतः) और सब ओर से विद्या में व्याप्त हुए ब्रह्मचर्य से घर को (आ, अगात्) आवे (स, उ) वही विद्या में (जायमानः) प्रसिद्ध हुआ (श्रेयान्) अतिप्रशस्त (भवति) होता है (तम्) उसको (देवयन्तः) कामना करते हुए (धीरासः) बुद्धिमान् (स्वाध्यः) सुन्दर विद्या का आधान करनेवाले (कवयः) सर्वोत्तम विद्वान् लोग (मनसा) विज्ञान वा अन्तःकरण से (उत्, नयन्ति) उन्नत करते उत्तम मानते हैं ॥४॥
Connotation: - कोई भी मनुष्य विद्या की उत्तम शिक्षा और ब्रह्मचर्य्य सेवन के विना दीर्घायु और सभा के योग्य विद्वान् नहीं हो सकता और न वह मनुष्य कहीं सत्कार पाने योग्य होता है। जिस मनुष्य की धार्मिक विद्वान् प्रशंसा करते हैं, वही विद्वान् है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कीदृशो विद्वान् भवतीत्याह।

Anvay:

योऽष्टमं वर्षमारभ्य ब्रह्मचर्येण गृहीतविद्यो युवा सुवासाः परिवीतः सन् गृहमागात्स उ विद्यायां जायमानः सञ्छ्रेयान् भवति तं देवयन्तो धीरासः स्वाध्यः कवयो मनसोन्नयन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (युवा) यौवनावस्थां प्राप्तः (सुवासाः) शोभनानि वासांसि धृतानि येन सः (परिवीतः) परितः सर्वतो व्याप्तविद्यः (आ) समन्तात् (अगात्) आगच्छेत् (सः) (उ) एव (श्रेयान्) अतिशयेन प्रशस्ता (भवति) (जायमानः) विद्याया मातुरन्तः स्थित्वा निष्पन्नः (तम्) (धीरासः) धीमन्तः (कवयः) अनूचाना विद्वांसः (उत्) ऊर्ध्वे (नयन्ति) उत्तमं संपादयन्ति (स्वाध्यः) सुष्ठु विद्याधानकर्त्तारः (मनसा) विज्ञानेनान्तःकरणेन वा (देवयन्तः) कामयमानाः ॥४॥
Connotation: - नहि कश्चिदपि विद्यासुशिक्षाब्रह्मचर्यसेवनेन विना दीर्घायुः सभ्यो विद्वान्भवितुमर्हति न चैष कापि सत्कारं प्राप्तुं योग्यो जायते यं धार्मिका विद्वांसः प्रशंसन्ति स एव विद्वानस्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणताही माणूस विद्येच्या उत्तम शिक्षणाने व ब्रह्मचर्य सेवनाशिवाय दीर्घायू व सभ्य विद्वान बनू शकत नाही, तो कुठे सत्कार करण्यायोग्यही नसतो. ज्या माणसाची धार्मिक विद्वान प्रशंसा करतात तोच विद्वान होय. ॥ ४ ॥