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शृङ्गा॑णी॒वेच्छृ॒ङ्गिणां॒ सं द॑दृश्रे च॒षाल॑वन्तः॒ स्वर॑वः पृथि॒व्याम्। वा॒घद्भि॑र्वा विह॒वे श्रोष॑माणा अ॒स्माँ अ॑वन्तु पृत॒नाज्ये॑षु॥

English Transliteration

śṛṅgāṇīvec chṛṅgiṇāṁ saṁ dadṛśre caṣālavantaḥ svaravaḥ pṛthivyām | vāghadbhir vā vihave śroṣamāṇā asmām̐ avantu pṛtanājyeṣu ||

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Pad Path

शृङ्गा॑णिऽइव। शृ॒ङ्गिणा॒म्। सम्। द॒दृ॒श्रे॒। च॒षाल॑ऽवन्तः। स्वर॑वः। पृ॒थि॒व्याम्। वा॒घत्ऽभिः॑। वा॒। वि॒ऽह॒वे। श्रोष॑माणाः। अ॒स्मान्। अ॒व॒न्तु॒। पृ॒त॒नाज्ये॑षु॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:8» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन विद्वान् जन सत्कार पाते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (चषालवन्तः) बहुत भोगोंवाले (स्वरवः) प्रशंसक लोग (विश्वे) विशेषकर जहाँ पठन-पाठनादि का शब्द करते उस स्थान में (श्रोषमाणाः) सुनते हुए (वाघद्भिः) ऋत्विजों के साथ वर्त्तमान (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (शृङ्गिणाम्) भैंसा आदि के (शृङ्गाणीव) सींगों के तुल्य (सं ददृश्रे) सम्यक् दीख पडते हैं वे (इत्) ही (पृतनाज्येषु) संग्रामों (वा) अथवा अन्य व्यवहारों में (अस्मान्) हमको (अवन्तु) रक्षित करें ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो बहुश्रुत विद्वान् लोग अपने आत्मा के तुल्य सबकी रक्षा करते हैं, वे उत्तम कीर्ति से श्रेष्ठाङ्ग मस्तक में वर्त्तमान सब पशुओं के सींगों के तुल्य उत्तम पद को प्राप्त होकर संसार में स्तुति किये हुए के सत्कार को प्राप्त होते हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के विद्वांसः सत्कारमाप्नुवन्तीत्याह।

Anvay:

ये चषालवन्तः स्वरवो विहवे श्रोषमाणा वाघद्भिः सह वर्त्तमानाः पृथिव्यां शृङ्गिणां शृङ्गाणीव संददृश्रे त इत्पृतनाज्येषु वेतरेषु व्यवहारेष्वस्मानवन्तु ॥१०॥

Word-Meaning: - (शृङ्गाणीव) (इत्) एव (शृङ्गिणाम्) महिषादीनाम् (सम्) सम्यक् (ददृश्रे) दृश्यन्ते (चषालवन्तः) बहवश्चषाला भोगा विद्यन्ते येषान्ते (स्वरवः) प्रशंसकाः (पृथिव्याम्) भूमौ (वाघद्भिः) ऋत्विग्भिः (वा) पक्षान्तरे (विहवे) विशेषेण ह्वयति शब्दयति यस्मिँस्तस्मिन् (श्रोषमाणाः) शृण्वन्तः। अत्र वाच्छन्दसीति द्वित्वाभावः। (अस्मान्) (अवन्तु) (पृतनाज्येषु) सङ्ग्रामेषु ॥१०॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये बहुश्रुता विद्वांसः स्वात्मवत्सर्वान् पालयन्ति ते सुकीर्त्त्योत्तमाङ्गे मस्तके संस्थितानि पशूनां शृङ्गाणीव योग्यपदवीं प्राप्य संसारे स्तूयमानाः सर्वैः सत्क्रियन्ते ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. बहुश्रुत विद्वान लोक स्वतःप्रमाणे सर्वांचे पालन व रक्षण करतात, ते उत्तम कीर्तीने मस्तकावरील शिंगाप्रमाणे उत्तम पद प्राप्त करतात, त्यांची जगात प्रशंसा होते व सत्कार होतो. ॥ १० ॥