म॒ही समै॑रच्च॒म्वा॑ समी॒ची उ॒भे ते अ॑स्य॒ वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्टे। शृ॒ण्वे वी॒रो वि॒न्दमा॑नो॒ वसू॑नि म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
mahī sam airac camvā samīcī ubhe te asya vasunā nyṛṣṭe | śṛṇve vīro vindamāno vasūni mahad devānām asuratvam ekam ||
म॒ही। सम्। ऐ॒र॒त्। च॒म्वा॑। स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची। उ॒भे। ते। अ॒स्य॒। वसु॑ना। न्यृ॑ष्टे॒ इति॒ निऽऋ॑ष्टे। शृ॒ण्वे। वी॒रः। वि॒न्दमा॑नः। वसू॑नि। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्या यो जगदीश्वरस्त उभे मही समीची द्यावापृथिव्यौ चम्वेव समैरदस्य वसुना सह न्यृष्टे स्तस्तद्देवानां महदेकमसुरत्वं वसूनि च विन्दमानो वीरोऽहं ब्रह्म नित्यं शृण्वे तद्यूयमपि सततं श्रुत्वैतानि प्राप्नुत ॥२०॥
MATA SAVITA JOSHI
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