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मा॒ता च॒ यत्र॑ दुहि॒ता च॑ धे॒नू स॑ब॒र्दुघे॑ धा॒पये॑ते समी॒ची। ऋ॒तस्य॒ ते सद॑सीळे अ॒न्तर्म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

English Transliteration

mātā ca yatra duhitā ca dhenū sabardughe dhāpayete samīcī | ṛtasya te sadasīḻe antar mahad devānām asuratvam ekam ||

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Pad Path

मा॒ता। च॒। यत्र॑। दु॒हि॒ता। च॒। धे॒नू इति॑। स॒ब॒र्दुघे॒ इति॑ स॒बः॒ऽदुघे॑। धा॒पये॑ते॒ इति॑। स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची। ऋ॒तस्य॑। ते॒। सद॑सि। ई॒ळे॒। अ॒न्तः। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:55» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:30» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Word-Meaning: - हे राजन् ! मैं (ते) आपकी (सदसि) सभा में जैसे (यत्र) जिस समय (माता) मान को देनेवाली माता के सदृश रात्रि (च) और (दुहिता) कन्या के सदृश प्रातःकाल (च) और (समीची) उत्तम प्रकार प्राप्त होती हुईं (सबर्दुघे) पालन करनेवाले दुग्ध आदि के सदृश रस की पूर्ति करने और (धेनू) धेनू के सदृश रस को देनेवाली (ऋतस्य) जल के सदृश सत्य के सम्बन्ध से (धापयेते) पिलाती हैं वैसे ही सभा के (अन्तः) मध्य में वर्त्तमान हुआ (ऋतस्य) जल के सदृश सत्य का (देवानाम्) श्रेष्ठ विद्वानों में (महत्) बड़े (एकम्) द्वितीयरहित (असुरत्वम्) दोषों को दूर करनेवाले की (ईळे) स्तुति करता हूँ ॥१२॥
Connotation: - जो सभ्य जन परमेश्वर से डर के उसकी आज्ञा के अनुसार जैसे रात्रि और दिन संपूर्ण संसार के नियमपूर्वक पालनकर्त्ता होते हैं, वैसे ही सभा में धर्म के विजय और अधर्म के पराजय से प्रजाओं को आनन्दित करें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Anvay:

हे राजन्नहं ते सदसि यथा यत्र माता च दुहिता च समीची सबर्दुघे धेनू ऋतस्य सम्बन्धेन धापयेते तथैव ते सदस्यन्तःस्थितस्सन्नृतस्य देवानाम्महदेकमसुरत्वमीळे ॥१२॥

Word-Meaning: - (माता) मान्यप्रदा जननीव रात्रिः (च) (यत्र) यस्मिन्त्समये (दुहिता) दुहितेवोषा (च) (धेनू) धेनुवद्रसप्रदे (सबर्दुघे) सबः पालकस्य दुग्धादेरिव रसस्य प्रपूरिके (धापयेते) पाययतः (समीची) सम्यक् प्राप्नुवत्यौ (ऋतस्य) जलस्येव सत्यस्य (ते) तव (सदसि) सभायाम् (ईळे) स्तौमि (अन्तः) मध्ये (महत्) (देवानाम्) सभ्यानां विदुषाम् (असुरत्वम्) (एकम्) ॥१२॥
Connotation: - ये सभ्या जना परमेश्वराद्भीत्वा तदाज्ञाऽनुसारेण यथा रात्रिदिवसौ सर्वस्य जगतो नियमेन पालकौ भवतस्तथैव सभायां धर्मस्य विजयेनाऽधर्मस्य पराजयेन प्रजा आनन्दयन्तु ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सभ्य लोक परमेश्वराला भिऊन त्याच्या आज्ञेचे पालन करतात, जसे रात्र व दिवस जगाचे नियमपूर्वक पालन करतात तसे सभेमध्ये धर्माचा विजय व अधर्माचा पराजय करून प्रजेला आनंदित करावे. ॥ १२ ॥