स॒स॒र्प॒रीरम॑तिं॒ बाध॑माना बृ॒हन्मि॑माय ज॒मद॑ग्निदत्ता। आ सूर्य॑स्य दुहि॒ता त॑तान॒ श्रवो॑ दे॒वेष्व॒मृत॑मजु॒र्यम्॥
sasarparīr amatim bādhamānā bṛhan mimāya jamadagnidattā | ā sūryasya duhitā tatāna śravo deveṣv amṛtam ajuryam ||
स॒स॒र्प॒रीः। अम॑तिम्। बाध॑माना। बृ॒हत्। मि॒मा॒य॒। ज॒मद॑ग्निऽदत्ता। आ। सूर्य॑स्य। दु॒हि॒ता। त॒ता॒न॒। श्रवः॑। दे॒वेषु॑। अ॒मृत॑म्। अ॒जु॒र्यम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्या या जमदग्निदत्ता ससर्परीर्वागजुर्य्यं सूर्य्यस्य दुहिता तमो बाधमानोषा इव बृहदमतिं मिमाय देवेष्वजुर्य्यममृतं श्रव आ ततान तां वाचं सर्वथोन्नयत ॥१५॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A