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उप॑ नः सु॒तमा ग॑हि॒ सोम॑मिन्द्र॒ गवा॑शिरम्। हरि॑भ्यां॒ यस्ते॑ अस्म॒युः॥

English Transliteration

upa naḥ sutam ā gahi somam indra gavāśiram | haribhyāṁ yas te asmayuḥ ||

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Pad Path

उप॑। नः॒। सु॒तम्। आ। ग॒हि॒। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। गोऽआ॑शिरम्। हरि॑ऽभ्याम्। यः। ते॒। अ॒स्म॒ऽयुः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:42» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के गुणों को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त ! आप (हरिभ्याम्) घोड़ों से युक्त रथ से (यः) जो (ते) आपका वाहन (अस्मयुः) अपने को हम लोगों की इच्छा करता हुआ सा वर्त्तमान है, घोड़ों से युक्त उस रथ से (नः) हम लोगों के (सुतम्) उत्तम प्रकार सिद्ध (सोमम्) ओषधिगणों के सदृश ऐश्वर्य्य को (उप, आ, गहि) समीप में सब प्रकार प्राप्त हूजिये ॥१॥
Connotation: - वे लोग ही सब लोगों के मित्र हैं, कि जो लोग अपने ऐश्वर्य्य से सब लोगों को बुला कर सत्कार करते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं हरिभ्यां युक्तेन रथेन यस्ते रथोऽस्मयुर्वर्त्तते तेन हरिभ्यां युक्तेन नः सुतं सोममुपागहि ॥१॥

Word-Meaning: - (उप) (नः) अस्माकम् (सुतम्) सुसाधितम् (आ) (गहि) समन्तात् प्राप्नुहि (सोमम्) ओषधिगणमिवैश्वर्य्यम् (इन्द्र) बह्वैश्वर्य्ययुक्त (गवाशिरम्) गावोऽश्नन्ति यं तम् (हरिभ्याम्) अश्वाभ्यां युक्तेन रथेन (यः) (ते) तव (अस्मयुः) आत्मनोऽस्मानिच्छुरिव ॥१॥
Connotation: - त एव सर्वेषां सुहृदः सन्ति ये स्वैश्वर्येण सर्वानामन्त्र्य सत्कुर्वन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, विद्वान व सोम यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - भावार्थ -तेच लोक सर्व लोकांचे मित्र असतात जे लोक आपल्या धन-ऐश्वर्याने सर्व लोकांना आमंत्रित करून त्यांचा सत्कार करतात. ॥ १ ॥