उप॑ नः सु॒तमा ग॑हि॒ सोम॑मिन्द्र॒ गवा॑शिरम्। हरि॑भ्यां॒ यस्ते॑ अस्म॒युः॥
upa naḥ sutam ā gahi somam indra gavāśiram | haribhyāṁ yas te asmayuḥ ||
उप॑। नः॒। सु॒तम्। आ। ग॒हि॒। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। गोऽआ॑शिरम्। हरि॑ऽभ्याम्। यः। ते॒। अ॒स्म॒ऽयुः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के गुणों को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्विषयमाह।
हे इन्द्र ! त्वं हरिभ्यां युक्तेन रथेन यस्ते रथोऽस्मयुर्वर्त्तते तेन हरिभ्यां युक्तेन नः सुतं सोममुपागहि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, विद्वान व सोम यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.