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आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्य॑ग्घुवा॒नः सोम॑पीतये। हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः॥

English Transliteration

ā tū na indra madryag ghuvānaḥ somapītaye | haribhyāṁ yāhy adrivaḥ ||

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Pad Path

आ। तु। नः॒। इ॒न्द्र॒। म॒द्र्य॑क्। हु॒वा॒नः। सोम॑ऽपीतये। हरि॑ऽभ्याम्। या॒हि॒। अ॒द्रि॒ऽवः॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:41» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले एकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अद्रिवः) मेघों से युक्त सूर्य्य के तुल्य वर्त्तमान (इन्द्र) ऐश्वर्य्य के करनेवाले ! आप (सोमपीतये) सोमलतारूप औषध का रस पीया जाय जिस कर्म में उसके लिये (मद्र्यक्) मेरी पूजा अर्थात् उपासना करनेवाला (हुवानः) पुकारा गया जन (हरिभ्याम्) घोड़ों से (नः) हम लोगों को (आ) सब प्रकार (याहि) प्राप्त हो और हम लोग (तु) शीघ्र आपको प्राप्त होवें ॥१॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि शुभ कार्य्य आदि के उत्सवों में परस्पर एक दूसरे का आह्वान करके अन्न और जल आदिकों से सत्कार करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निविषयमाह।

Anvay:

हे अद्रिव इन्द्र ! त्वं सोमपीतये मद्र्यग्घुवानो हरिभ्यां नोऽस्मानायाहि वयन्तु भवन्तमायाम ॥१॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (तु)। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) ऐश्वर्य्यकारक (मद्र्यक्) मामञ्चतीति मद्र्यक् (हुवानः) आहूतः (सोमपीतये) सोमः पीतो यस्मिंस्तस्मै (हरिभ्याम्) अश्वाभ्याम् (याहि) (अद्रिवः) मेघवान् सूर्य्य इव वर्त्तमान ॥१॥
Connotation: - मनुष्यैरुत्सवेषु परस्परेषामाह्वानं कृत्वाऽन्नपानादिभिः सत्कारः कर्त्तव्यः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान माणसांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी उत्सव इत्यादीमध्ये परस्परांना आमंत्रित करून अन्न व जल इत्यादींनी सत्कार करावा. ॥ १ ॥