आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्य॑ग्घुवा॒नः सोम॑पीतये। हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः॥
ā tū na indra madryag ghuvānaḥ somapītaye | haribhyāṁ yāhy adrivaḥ ||
आ। तु। नः॒। इ॒न्द्र॒। म॒द्र्य॑क्। हु॒वा॒नः। सोम॑ऽपीतये। हरि॑ऽभ्याम्। या॒हि॒। अ॒द्रि॒ऽवः॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब नव ऋचावाले एकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निविषयमाह।
हे अद्रिव इन्द्र ! त्वं सोमपीतये मद्र्यग्घुवानो हरिभ्यां नोऽस्मानायाहि वयन्तु भवन्तमायाम ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान माणसांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.