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इन्द्र॒ सोमं॑ सोमपते॒ पिबे॒मं माध्य॑न्दिनं॒ सव॑नं॒ चारु॒ यत्ते॑। प्र॒प्रुथ्या॒ शिप्रे॑ मघवन्नृजीषिन्वि॒मुच्या॒ हरी॑ इ॒ह मा॑दयस्व॥

English Transliteration

indra somaṁ somapate pibemam mādhyaṁdinaṁ savanaṁ cāru yat te | prapruthyā śipre maghavann ṛjīṣin vimucyā harī iha mādayasva ||

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Pad Path

इन्द्र॑। सोम॑म्। सो॒म॒ऽप॒ते॒। पिब॑। इ॒मम्। माध्य॑न्दिनम्। सव॑नम्। चारु॑। यत्। ते॒। प्र॒ऽप्रुथ्य॑। शिप्रे॒ इति॑। म॒घ॒ऽवन्। ऋ॒जी॒षि॒न्। वि॒ऽमुच्य॑। हरी॒ इति॑। इ॒ह। मा॒द॒य॒स्व॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सत्रह ऋचावाले बत्तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में नित्य कर्म का विधान कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) अत्यन्त श्रेष्ठ धनयुक्त (सोमपते) ऐश्वर्य्य के पालने और (इन्द्र) ऐश्वर्य्य की उत्पत्ति करनेवाले ! आप (इमम्) इस (सोमम्) ऐश्वर्य्यकारक सोम आदि ओषधि स्वरूप को (पिब) पीओ (चारु) सुन्दर भोजन करने के योग्य (माध्यन्दिनम्) बीच में होनेवाले (सवनम्) भोजन वा होम आदि को सिद्ध करो। हे (ऋजीषिन्) शुद्धिकर्त्ता ! (ते) आपके (यत्) जो (शिप्रे) मुख के अवयवों के सदृश ऐहिक और पारलौकिक व्यवहार हैं उनको (प्रप्रुथ्या) पूर्ण कर और दुर्व्यसनों को (विमुच्य) त्याग के (हरी) घोड़ों के सदृश धारण और खींचने का प्रयोग करके आप (इह) इस संसार में (मादयस्व) आनन्द दीजिये ॥१॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये प्रथम भोजन मध्य दिन के समीप में करें और अग्निहोत्र आदि व्यवहारों में भोजन के समय बलिवैश्वदेव को कर और दूषित वायु को निकाल के आनन्दित हों ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ नित्यकर्मविधिरुच्यते।

Anvay:

हे मघवन्त्सोमपत इन्द्र त्वमिमं सोमं पिब चारु माध्यन्दिनं सवनं कुरु। हे ऋजीषिंस्ते यच्छिप्रे स्तस्ते प्रप्रुथ्या दुर्व्यसनानि विमुच्य हरी प्रयोज्य त्वमिह मादयस्व ॥१॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) ऐश्वर्योत्पादक (सोमम्) ऐश्वर्यकारकं सोमाद्योषधिमयम् (सोमपते) ऐश्वर्यस्य पालक (पिब) (इमम्) (माध्यन्दिनम्) मध्ये भवम्। अत्र मध्योमध्यं दिनण् चास्मादिति वार्त्तिकेन मध्यशब्दो मध्यमिति मान्तत्वमापद्यते भवेऽर्थे दिनण् च प्रत्ययः। (सवनम्) भोजनं होमादिकं वा (चारु) सुन्दरं भोक्तव्यम् (यत्) ये (ते) तव (प्रप्रुथ्या) प्रपूर्य्य (शिप्रे) मुखावयवाविव (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त (ऋजीषिन्) शोधक (विमुच्य) त्यक्त्वा। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हरी) अश्वाविव धारणाऽकर्षणे (इह) (मादयस्व) आनन्दय ॥१॥
Connotation: - मनुष्यैः प्रथमं भोजनं मध्यन्दिनस्य निकटे कर्त्तव्यमग्निहोत्रादिव्यवहारेषु भोजनसमये बलिवैश्वदेवं विधाय दूषितं वायुं निःसार्य्याऽऽनन्दितव्यम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सोम, माणसे, ईश्वर व विद्युतच्या गुणांचे वर्णन केल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी भोजन मध्यदिवसा करावे व अग्निहोत्र इत्यादी व्यवहारात भोजनाच्या वेळी बलिवैश्वदेव करून दूषित वायू दूर करून आनंदित व्हावे. ॥ १ ॥