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पति॑र्भव वृत्रहन्त्सू॒नृता॑नां गि॒रां वि॒श्वायु॑र्वृष॒भो व॑यो॒धाः। आ नो॑ गहि स॒ख्येभिः॑ शि॒वेभि॑र्म॒हान्म॒हीभि॑रू॒तिभिः॑ सर॒ण्यन्॥

English Transliteration

patir bhava vṛtrahan sūnṛtānāṁ girāṁ viśvāyur vṛṣabho vayodhāḥ | ā no gahi sakhyebhiḥ śivebhir mahān mahībhir ūtibhiḥ saraṇyan ||

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Pad Path

पतिः॑। भ॒व॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। सू॒नृता॑नाम्। गि॒राम्। वि॒श्वऽआ॑युः। वृ॒ष॒भः। व॒यः॒ऽधाः। आ। नः॒। ग॒हि॒। स॒ख्येभिः॑। शि॒वेभिः॑। म॒हान्। म॒हीभिः॑। ऊ॒तिऽभिः॑। स॒र॒ण्यन्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:18 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (वृत्रहन्) मेघ के नाशकारक सूर्य्य के सदृश तेजधारी राजन् ! आप (महान्) प्रतिष्ठित (विश्वायुः) पूर्ण आयु से युक्त (वृषभः) सुखों की वृष्टि और (वयोधाः) जीवन के धारण करनेवाले (शिवेभिः) मङ्गलकारक (सख्येभिः) मित्रों के कर्म्मों से (महीभिः) बड़ी (ऊतिभिः) रक्षाओं आदि से युक्त (सरण्यन्) अपने चलन वा विज्ञान की इच्छा करते हुए (सूनृतानाम्) उत्तम सत्य से युक्त (गिराम्) वाणियों के (पतिः) पालनकर्त्ता (भव) हूजिये और (नः) हम लोगों को (आ, गहि) प्राप्त हूजिये ॥१८॥
Connotation: - जो मनुष्य सत्य बोलने शत्रुता को त्यागने अपने प्राण के तुल्य सम्पूर्ण जनों के पालन करने और सूर्य्य के सदृश विद्या धर्म और नम्रता के प्रकाश करनेवाले विद्वान् स्वामी हों, वे श्रेष्ठ होवैं ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वृत्रहन्निन्द्र राजँस्त्वं महान् विश्वायुर्वृषभो वयोधाः शिवेभिः सख्येभिर्महीभिरूतिभिः सह सरण्यन्सन् सूनृतानां गिरां पतिर्भव नोऽस्मानागहि ॥१८॥

Word-Meaning: - (पतिः) पालकः स्वामी (भव) (वृत्रहन्) मेघहन्ता सूर्य इव वर्त्तमान (सूनृतानाम्) सुष्ठु ऋतानि सत्यानि यासु तासाम् (गिराम्) वाचाम् (विश्वायुः) पूर्णायुः (वृषभः) सुखवर्षकः (वयोधाः) यो वयो जीवनं दधाति सः (आ) (नः) अस्मान् (गहि) आगच्छ प्राप्नुहि (सख्येभिः) सखीनां कर्मभिः (शिवेभिः) मङ्गलकारिभिः (महान्) पूज्यतमः (महीभिः) महतीभिः (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः (सरण्यन्) आत्मनः सरणं गमनं विज्ञानं वेच्छन् ॥१८॥
Connotation: - ये मनुष्याः सत्यवाचोऽजातशत्रवः स्वात्मवत्सर्वेषां पालकाः सूर्य्यवद्विद्याधर्मविनयप्रकाशका विद्वांसः स्वामिनस्स्युस्ते महान्तो भवेयुः ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे सत्य वचन, शत्रुत्वाचा त्याग, आपल्या प्राणाप्रमाणे संपूर्ण लोकांचे पालन व सूर्याप्रमाणे विद्या, धर्म व नम्रतेचा प्रकाश करणारे विद्वान असून स्वामी असतील तर ते श्रेष्ठ असतात. ॥ १८ ॥