अनु॑ कृ॒ष्णे वसु॑धिती जिहाते उ॒भे सूर्य॑स्य मं॒हना॒ यज॑त्रे। परि॒ यत्ते॑ महि॒मानं॑ वृ॒जध्यै॒ सखा॑य इन्द्र॒ काम्या॑ ऋजि॒प्याः॥
anu kṛṣṇe vasudhitī jihāte ubhe sūryasya maṁhanā yajatre | pari yat te mahimānaṁ vṛjadhyai sakhāya indra kāmyā ṛjipyāḥ ||
अनु॑। कृ॒ष्णे इति॑। वसु॑धिती॒ इति॒ वसु॑ऽधिती। जि॒हा॒ते॒ इति॑। उ॒भे इति॑। सूर्य॑स्य। मं॒हना॑। यज॑त्रे। परि॑। यत्। ते॒। म॒हि॒मान॑म्। वृ॒जध्यै॑। सखा॑यः। इ॒न्द्र॒। काम्याः॑। ऋ॒जि॒प्याः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे इन्द्र यद्ये ते काम्या ऋजिप्याः सखायो महिमानमनुकृष्णे उभे यजत्रे वसुधिती सूर्यस्य मंहना वृजध्यै परि जिहाते इव स्तस्ते वर्धयन्ति ते त्वया सत्कर्त्तव्याः ॥१७॥
MATA SAVITA JOSHI
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