दिदृ॑क्षन्त उ॒षसो॒ याम॑न्न॒क्तोर्वि॒वस्व॑त्या॒ महि॑ चि॒त्रमनी॑कम्। विश्वे॑ जानन्ति महि॒ना यदागा॒दिन्द्र॑स्य॒ कर्म॒ सुकृ॑ता पु॒रूणि॑॥
didṛkṣanta uṣaso yāmann aktor vivasvatyā mahi citram anīkam | viśve jānanti mahinā yad āgād indrasya karma sukṛtā purūṇi ||
दिदृ॑क्षन्ते। उ॒षसः॑। याम॑न्। अ॒क्तोः। वि॒वस्व॑त्याः। महि॑। चि॒त्रम्। अनी॑कम्। विश्वे॑। जा॒न॒न्ति॒। म॒हि॒ना। यत्। आ। अगा॑त्। इन्द्र॑स्य। कर्म॑। सुऽकृ॑ता। पु॒रूणि॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
यद्ये विश्वे मनुष्या विवस्वत्या उषसोऽक्तोर्यामन् दिदृक्षन्ते महिना महि चित्रमनीकं जानन्तीन्द्रस्य पुरूणि सुकृता कर्म दिदृक्षन्ते तान्य आगात्स सुखी स्यात् ॥१३॥
MATA SAVITA JOSHI
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