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दिदृ॑क्षन्त उ॒षसो॒ याम॑न्न॒क्तोर्वि॒वस्व॑त्या॒ महि॑ चि॒त्रमनी॑कम्। विश्वे॑ जानन्ति महि॒ना यदागा॒दिन्द्र॑स्य॒ कर्म॒ सुकृ॑ता पु॒रूणि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

didṛkṣanta uṣaso yāmann aktor vivasvatyā mahi citram anīkam | viśve jānanti mahinā yad āgād indrasya karma sukṛtā purūṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दिदृ॑क्षन्ते। उ॒षसः॑। याम॑न्। अ॒क्तोः। वि॒वस्व॑त्याः। महि॑। चि॒त्रम्। अनी॑कम्। विश्वे॑। जा॒न॒न्ति॒। म॒हि॒ना। यत्। आ। अगा॑त्। इन्द्र॑स्य। कर्म॑। सुऽकृ॑ता। पु॒रूणि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:30» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (विश्वे) संपूर्ण मनुष्य (विवस्वत्याः) सूर्य मण्डल के निमित्त व्यवहारवाली (उषसः) प्रभात वेलाओं को (अक्तोः) रात्रि के (यामन्) मार्ग में (दिदृक्षन्ते) देखने की इच्छा करते हैं (महिना) महिमा से (महि) बड़ी (चित्रम्) अद्भुत (अनीकम्) सेना को (जानन्ति) जानते हैं (इन्द्रस्य) बिजुली के (पुरूणि) बहुत (सुकृता) उत्तम प्रकार किये गये (कर्म) कर्मों को देखने की इच्छा करते हैं, उनको जो (आ, अगात्) प्राप्त हो, वह सुखी होवे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो परीक्षक लोग प्रातःकाल उठ के प्रयत्न से व्यवहारों को सिद्ध करते हैं, वे इस संसार में ज्ञान विशेष से प्रतिष्ठा को प्राप्त और बल से युक्त होते हैं ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यद्ये विश्वे मनुष्या विवस्वत्या उषसोऽक्तोर्यामन् दिदृक्षन्ते महिना महि चित्रमनीकं जानन्तीन्द्रस्य पुरूणि सुकृता कर्म दिदृक्षन्ते तान्य आगात्स सुखी स्यात् ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दिदृक्षन्ते) द्रष्टुमिच्छन्ति (उषसः) प्रभातान् (यामन्) यामनि मार्गे (अक्तोः) रात्रेः (विवस्वत्याः) यः विवस्वति साध्व्यः (महि) महत् (चित्रम्) अद्भुतम् (अनीकम्) सैन्यम् (विश्वे) सर्वे (जानन्ति) (महिना) महिम्ना। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति नलोपः। (यत्) ये (आ) समन्तात् (अगात्) प्राप्नुयात् (इन्द्रस्य) विद्युतः (कर्म) कर्माणि (सुकृता) सुष्ठुकृतानि (पुरूणि) बहूनि ॥१३॥
भावार्थभाषाः - ये परीक्षकाः प्रातरुत्थाय प्रयत्नेन व्यवहारान्साध्नुवन्ति तेऽत्र ज्ञानविशेषा पूज्यन्ते बलं च लभन्ते ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे परीक्षक प्रातःकाळी उठून प्रयत्नाने व्यवहार सिद्ध करतात ते विशेष ज्ञानाने या जगात प्रतिष्ठा व बल प्राप्त करतात. ॥ १३ ॥