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अ॒ग्निं य॒न्तुर॑म॒प्तुर॑मृ॒तस्य॒ योगे॑ व॒नुषः॑। विप्रा॒ वाजैः॒ समि॑न्धते॥

English Transliteration

agniṁ yanturam apturam ṛtasya yoge vanuṣaḥ | viprā vājaiḥ sam indhate ||

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Pad Path

अ॒ग्निम्। य॒न्तुर॑म्। अ॒प्ऽतुर॑म्। ऋ॒तस्य॑। योगे॑। व॒नुषः॑। विप्राः॑। वाजैः॑। सम्। इ॒न्ध॒ते॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:27» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:30» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (वनुषः) याचना करनेवाले (विप्राः) बुद्धिमान् जन (ऋतस्य) सत्य के (योगे) योग में (वाजैः) विज्ञान आदिकों से (यन्तुरम्) प्राप्तिकारक (अप्तुरम्) प्राण वा जलों की प्रेरणाकर्त्ता (अग्निम्) अग्नि के सदृश तेजस्वी को (सम्) (इन्धते) उत्तम प्रकार प्रदीप्त करें, वैसे ही सम्पूर्ण जनों से विद्या प्रकाश करने योग्य है ॥११॥
Connotation: - जिस समय विद्वान् पुरुषों का सङ्ग होवे, उस समय उत्तम विज्ञान ही की प्रश्न-उत्तरों से याचना करनी चाहिये, इससे अधिक लाभ और न समझना चाहिये ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा वनुषो विप्रा ऋतस्य योगे वाजैर्यन्तुरमप्तुरमग्निं समिन्धते तथैव सर्वैर्विद्याः प्रकाशनीयाः ॥११॥

Word-Meaning: - (अग्निम्) पावकमिव वर्त्तमानम् (यन्तुरम्) यन्तारम्। अत्र यमधातोर्बाहुलकात्तुरः प्रत्ययः। (अप्तुरम्) योऽपः प्राणान् जलानि वा तोरयति प्रेरयति तम् (ऋतस्य) सत्यस्य (योगे) (वनुषः) याचकाः (विप्राः) मेधाविनः (वाजैः) विज्ञानादिभिः (सम्) (इन्धते) सम्यक् प्रदीपयेयुः ॥११॥
Connotation: - यदा विदुषां सङ्गो भवेत्तदा सुविज्ञानस्यैव प्रश्नसमाधानाभ्यां याचना कार्य्या, अस्मात्परो लाभोऽन्यो नैव मन्तव्यः ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्यावेळी विद्वान पुरुषांचा संग होतो, त्यावेळी उत्तम विज्ञानाची प्रश्नोत्तररूपाने याचना केली पाहिजे. यापेक्षा कोणताही अधिक लाभ नाही हे समजावे. ॥ ११ ॥