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श॒तधा॑र॒मुत्स॒मक्षी॑यमाणं विप॒श्चितं॑ पि॒तरं॒ वक्त्वा॑नाम्। मे॒ळिं मद॑न्तं पि॒त्रोरु॒पस्थे॒ तं रो॑दसी पिपृतं सत्य॒वाच॑म्॥

English Transliteration

śatadhāram utsam akṣīyamāṇaṁ vipaścitam pitaraṁ vaktvānām | meḻim madantam pitror upasthe taṁ rodasī pipṛtaṁ satyavācam ||

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Pad Path

श॒तऽधा॑रम्। उत्स॑म्। अक्षी॑यमाणम्। वि॒पः॒ऽचित॑म्। पि॒तर॑म्। वक्त्वा॑नाम्। मे॒ळिम्। मद॑न्तम्। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑। तम्। रो॒द॒सी॒ इति॑। पि॒पृ॒त॒म्। स॒त्य॒ऽवाच॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:26» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (उत्सम्) कूप के सदृश (अक्षीयमाणम्) विद्या के विज्ञान से थाहरहित पूर्ण विद्यायुक्त (शतधारम्) सैकड़ों प्रकार की उत्तम शिक्षा सहित वाणीवाले (पितरम्) पिता के तुल्य वर्त्तमान (वक्त्वानाम्) कहने को इकट्ठे किये गये वाक्यों के वक्ता (मेळिम्) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणी और (मदन्तम्) स्तुतिकारक (सत्यवाचम्) सत्य वाणी युक्त जिस (विपश्चितम्) विद्वान् पुरुष को (पित्रोः) पिता-माता के (उपस्थे) समीप में (रोदसी) भूमि सूर्य्य (पिपृतम्) पालते हैं, उस ही की सबलोग अपने आत्मा के तुल्य सेवा करो ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पूर्ण विद्वान् अतिसूक्ष्म बुद्धियुक्त पृथिवी के सदृश क्षमाशील सूर्य्य के सदृश अन्तःकरण से शुद्ध विद्वान् मनुष्यों में पिता के सदृश वर्त्ताव रक्खे, उसीकी सब लोग अपने आत्मा के तुल्य सेवा करें ॥९॥ इस सूक्त में विद्वान् अग्नि और वायु के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त में कहे अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह छब्बीसवाँ सूक्त और सत्ताईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या उत्समिवाक्षीयमाणं शतधारं पितरं वक्त्वानां वक्तारं मेळिं मदन्तं सत्यवाचं विपश्चितं यं पित्रोरुपस्थे रोदसी पिपृतं पालयतस्तं सेवध्वम् ॥९॥

Word-Meaning: - (शतधारम्) शतधा धारा सुशिक्षिता वाग् यस्य तम् (उत्सम्) कूपमिव (अक्षीयमाणम्) विद्याविज्ञानागाधमक्षीणविद्यम् (विपश्चितम्) विद्वांसम् (पितरम्) पितृवद्वर्त्तमानम् (वक्त्वानाम्) वक्तुं समुचितानां वाक्यानाम् (मेळिम्) सुशिक्षितां वाचम् (मदन्तम्) स्तुवन्तम् (पित्रोः) जनकजनन्योः (उपस्थे) समीपे (तम्) (रोदसी) भूमिसूर्य्यौ (पिपृतम्) पालयतः। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (सत्यवाचम्) सत्या वाग् यस्य तम् ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽपरिमितविद्यो गम्भीरप्रज्ञः पृथिवीवत् क्षमावानादित्यवच्छुद्धान्तःकरणो विद्वान्नृषु पितृवद्वर्त्तेत तमेव सर्वे स्वात्मवत्सेवन्ताम् ॥९॥ अत्र विद्वदग्निवायुगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥९॥ इति षड्विंशतितमं सूक्तं सप्तविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो पूर्ण विद्वान, अति सूक्ष्म बुद्धियुक्त, पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील, सूर्याप्रमाणे अंतःकरणाने शुद्ध, विद्वान माणसांमध्ये पित्याप्रमाणे वर्तन ठेवणारा असेल त्याचीच सर्व लोकांनी आपल्या आत्म्याप्रमाणे सेवा करावी. ॥ ९ ॥