अ॒ग्निं होता॑रं॒ प्र वृ॑णे मि॒येधे॒ गृत्सं॑ क॒विं वि॑श्व॒विद॒ममू॑रम्। स नो॑ यक्षद्दे॒वता॑ता॒ यजी॑यान्रा॒ये वाजा॑य वनते म॒घानि॑॥
agniṁ hotāram pra vṛṇe miyedhe gṛtsaṁ kaviṁ viśvavidam amūram | sa no yakṣad devatātā yajīyān rāye vājāya vanate maghāni ||
अ॒ग्निम्। होता॑रम्। प्र। वृ॒णे॒। मि॒येधे॑। गृत्स॑म्। क॒विम्। वि॒श्व॒ऽविद॑म्। अमू॑रम्। सः। नः॒। य॒क्ष॒त्। दे॒वऽता॑ता। यजी॑यान्। रा॒ये। वाजा॑य। व॒न॒ते॒। म॒घानि॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब इस तृतीय मण्डल में १९ उन्नीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों का धनादि ऐश्वर्य्य कैसे बढ़े, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ मनुष्याणां धनाद्यैश्वर्यं कथं वर्धेतेत्याह।
हे विद्वन्नहं यं मियेधे होतारं विश्वविदममूरं कविं गृत्समग्निं प्रवृणे स यजीयाँस्त्वं वाजाय वनते राये मघानि देवताता नोऽस्मान्यक्षत् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.