Go To Mantra

चक्रि॒र्यो विश्वा॒ भुव॑ना॒भि सा॑स॒हिश्चक्रि॑र्दे॒वेष्वा दुवः॑। आ दे॒वेषु॒ यत॑त॒ आ सु॒वीर्य॒ आ शंस॑ उ॒त नृ॒णाम्॥

English Transliteration

cakrir yo viśvā bhuvanābhi sāsahiś cakrir deveṣv ā duvaḥ | ā deveṣu yatata ā suvīrya ā śaṁsa uta nṛṇām ||

Mantra Audio
Pad Path

चक्रिः॑। यः। विश्वा॑। भुव॑ना। अ॒भि। स॒स॒हिः। चक्रिः॑। दे॒वेषु॑। आ। दुवः॑। आ। दे॒वेषु॑। यत॑ते। आ। सु॒ऽवीर्ये॑। आ। शंसे॑। उ॒त। नृ॒णाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:16» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवना) लोकों का (अभि, चक्रिः) अभिमुख कर्ता (देवेषु) उत्तम गुणों में (सासहिः) अतिसहनशील और (दुवः) सेवन को (आ, चक्रिः) अच्छे प्रकार करनेवाला और जो (देवेषु) स्तुतिकारकों में (आ) (यतते) अच्छा यत्न करता है (उत) और भी (नृणाम्) वीरपुरुषों की (आ) (शंसे) स्तुति में (सुवीर्य्ये) श्रेष्ठ बल में (आ) सब प्रकार प्रयत्न करता है, उसकी सदा (सेवध्वम्) सेवा करो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिसने सम्पूर्ण लोक तथा मनुष्य आदि प्राणी रचे और उन प्राणियों के जीवनार्थ अन्न आदि पदार्थ रचे और जो विद्वानों से जानने योग्य उस ही परमात्मा का निरन्तर सेवन करना चाहिये ॥४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यो विश्वा भुवनाऽभिचक्रिर्देवेषु सासहिर्दुवरा चक्रिर्देवेष्वा यतत उतापि नृणामाशंसे सुवीर्य्य आ यतते तं सदा सेवध्वम् ॥४॥

Word-Meaning: - (चक्रिः) यः करोति सः (यः) (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) भवन्ति येषु तानि भुवनानि (अभि) (सासहिः) अतिशयेन सोढा (चक्रिः) कर्तुं शीलः (देवेषु) दिव्यगुणेषु (आ) (दुवः) परिचरणं सेवनम् (आ) (देवेषु) प्रशंसकेषु (यतते) साध्नोति (आ) (सुवीर्य्ये) शोभने बले (आ) (शंसे) स्तुतौ (उत) (नृणाम्) वीरजनानाम् ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या येन सर्वे लोका निर्मिता मनुष्यादयः प्राणिनस्तेषां निर्वाहायान्नादयः पदार्था रचिता यो विद्वद्भिर्वेद्यस्तस्यैव परमात्मनः सेवनं सततं कर्त्तव्यम् ॥४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! ज्याने संपूर्ण लोक व मनुष्य इत्यादी प्राणी निर्माण केलेले आहेत, त्या प्राण्यांच्या जीवनासाठी अन्न इत्यादी पदार्थ निर्माण केलेले आहेत व जो विद्वानांनी जाणण्यायोग्य आहे, त्याच परमात्म्याचे निरंतर सेवन केले पाहिजे. ॥ ४ ॥