तुभ्यं॑ दक्ष कविक्रतो॒ यानी॒मा देव॒ मर्ता॑सो अध्व॒रे अक॑र्म। त्वं विश्व॑स्य सु॒रथ॑स्य बोधि॒ सर्वं॒ तद॑ग्ने अमृत स्वदे॒ह॥
tubhyaṁ dakṣa kavikrato yānīmā deva martāso adhvare akarma | tvaṁ viśvasya surathasya bodhi sarvaṁ tad agne amṛta svadeha ||
तुभ्य॑म्। द॒क्ष॒। क॒वि॒क्र॒तो॒ इति॑ कविऽक्रतो। यानि॑। इ॒मा। देव॑। मर्ता॑सः। अ॒ध्व॒रे। अक॑र्म। त्वम्। विश्व॑स्य। सु॒ऽरथ॑स्य। बो॒धि॒। सर्व॑म्। तत्। अ॒ग्ने॒। अ॒मृ॒त॒। स्व॒द॒। इ॒ह॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब विद्वानों के तुल्य अन्य लोग आचरण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ विद्वद्वदितर आचरन्त्वित्याह।
हे दक्ष कविक्रतो देवाऽमृताऽग्ने विद्वन्मर्त्तासो वयमध्वरे तुभ्यं यानीमा धर्म्याणि कर्माणीहाऽकर्म तत्सर्वं त्वं विश्वस्य सुरथस्य मध्ये बोधि सुसंस्कृतान्यन्नानि स्वद ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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