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उ॒त नो॒ ब्रह्म॑न्नविष उ॒क्थेषु॑ देव॒हूत॑मः। शं नः॑ शोचा म॒रुद्वृ॒धोऽग्ने॑ सहस्र॒सात॑मः॥

English Transliteration

uta no brahmann aviṣa uktheṣu devahūtamaḥ | śaṁ naḥ śocā marudvṛdho gne sahasrasātamaḥ ||

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Pad Path

उ॒त। नः॒। ब्रह्म॑न्। अ॒वि॒षः॒। उ॒क्थेषु॑। दे॒व॒ऽहूत॑मः। शम्। नः॒। शो॒च॒। म॒रुत्ऽवृ॑धः। अग्ने॑। स॒ह॒स्र॒ऽसात॑मः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:13» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य कीर्त्ति से प्रकाशमान ! आप (ब्रह्मन्) धन और (उक्थेषु) प्रशंसनीय पदार्थों के निमित्त (नः) हमको (अविषः) संयुक्त कीजिये (उत) और (देवहूतमः) विद्वानों से अतिप्रशंसा को प्राप्त (सहस्रसातमः) असङ्ख्य उपदेश वा धनों को अत्यन्त देनेवाले आप (मरुद्वृधः) मनुष्यों से बढ़ते हुए (नः) हमारे (शम्) सुख का (शोच) विचार कीजिये वा सुख प्राप्त कीजिये ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के शरण जाके प्रथम से ब्रह्मचर्य्य विद्या आदि का ग्रहण तदनन्तर धन ऐश्वर्य्य की वृद्धि के उपाय की प्रार्थना करें और फिर धन को प्राप्त होके उत्तम विद्यावान् पुरुषों और श्रेष्ठ मार्ग में खर्चें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने त्वं ब्रह्मन्नुक्थेषु नोऽविष उत देवहूतमः सहस्रसातमस्त्वं मरुद्वृधो नः शं शोच प्रापय ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (नः) अस्मान् (ब्रह्मन्) ब्रह्मणि धने (अविषः) व्यापयेत् (उक्थेषु) प्रशंसनीयपदार्थेषु (देवहूतमः) देवैर्विद्वद्भिरतिशयेन प्रशंसितः (शम्) सुखम् (नः) अस्माकम् (शोच) विचारय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (मरुद्वृधः) मनुष्यैर्वर्धमानान् (अग्ने) अग्निरिव यशसा प्रकाशमान (सहस्रसातमः) यः सहस्रमसङ्ख्यं सनति ददाति सोऽतिशयितः ॥६॥
Connotation: - मनुष्यैर्विदुषः प्राप्य प्रथमतो ब्रह्मचर्य्यविद्यादिग्रहणं ततो धनैश्वर्य्यवर्द्धनोपायो याचनीयो धनं प्राप्य सुपात्रेषु सन्मार्गे व्ययितव्यम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी विद्वानांना शरण जाऊन प्रथमपासून ब्रह्मचर्य विद्या इत्यादींचे ग्रहण करावे. त्यानंतर धन ऐश्वर्याच्या वृद्धी उपायासाठी प्रार्थना करावी व पुन्हा धन प्राप्त करून उत्तम विद्यायुक्त पुरुषांसाठी व श्रेष्ठ कार्यासाठी खर्च करावे. ॥ ६ ॥