उ॒त नो॒ ब्रह्म॑न्नविष उ॒क्थेषु॑ देव॒हूत॑मः। शं नः॑ शोचा म॒रुद्वृ॒धोऽग्ने॑ सहस्र॒सात॑मः॥
uta no brahmann aviṣa uktheṣu devahūtamaḥ | śaṁ naḥ śocā marudvṛdho gne sahasrasātamaḥ ||
उ॒त। नः॒। ब्रह्म॑न्। अ॒वि॒षः॒। उ॒क्थेषु॑। दे॒व॒ऽहूत॑मः। शम्। नः॒। शो॒च॒। म॒रुत्ऽवृ॑धः। अग्ने॑। स॒ह॒स्र॒ऽसात॑मः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अग्ने त्वं ब्रह्मन्नुक्थेषु नोऽविष उत देवहूतमः सहस्रसातमस्त्वं मरुद्वृधो नः शं शोच प्रापय ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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